३५३. भेंट: रायटरको[१]
[जोहानिसबर्ग
दिसम्बर ३०, १९०७]
…शिनाख्तके मामलेमें भारतीयोंने सरकारको बराबर सहायता देनेका प्रस्ताव किया परन्तु सरकारने उनकी सहायताके प्रस्तावोंकी उपेक्षा की। भारतीय सदैव इस बात से सहमत रहे हैं कि ट्रान्सवालको भावी प्रवासके नियमन और नियन्त्रणका अधिकार है। सबसे अधिक चिन्ता उन्हें उन भारतीयोंकी स्थितिके बारेमें है जो अब ट्रान्सवालके वैध निवासी हैं।
श्री गांधीने इस आरोपको अस्वीकार किया कि भारतीयोंने सरकारके अधिनियमोंका अत्यन्त सन्तोषजनक अर्थ लगाकर सरकारका अपमान किया है। वे हृदयसे इस बातका स्वागत करेंगे कि उनका मामला साम्राज्यीय सम्मेलनमें उठाया जाये। उन्हें विश्वास है कि इसका परिणाम एक मानवीय सन्तोषजनक व्यवस्थाके रूपमें होगा, जिसका दोनों पक्ष पालन करेंगे। श्री गांधीने शिकायत की कि अनाक्रामक प्रतिरोधियोंके साथ पेश आनेके लिए सरकारको प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमके द्वारा अत्यधिक अधिकार दे दिये गये हैं। उनके खयालसे अपराधको देखते हुए यह अधिकार सर्वथा असंगत है। उन्होंने आशंका प्रकट की कि जिन भारतीयोंने पंजीयन करानेसे इनकार किया है उनके व्यापारिक परवाने १ जनवरीको अस्वीकृत हो जायेंगे। इसका परिणाम यह होगा कि वे बिना परवानेके व्यापार जारी रखेंगे।
श्री गांधीने कहा कि यहाँके भारतीयोंको भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके सूरत अधिवेशन और अन्य क्षेत्रोंसे सहानुभूति और सहायताके तार मिले हैं। —रायटर।
इंडिया, ३-१-१९०८
- ↑ गांधीजीने यह भेंट सर रेमंड वेस्टके उद्गारोंपर टीका करते हुए दी थी। सर रेमंड वेस्टने लन्दन में कहा था कि दोनों पक्ष "बहुत दूर" चले गये हैं। ट्रान्सवाल सरकारने "रूक्षतासे" भारतीयोंकी भावनाओंकी उपेक्षा की है और भारतीयोंने सरकारके अधिनियमका कमसे कम के बजाय अधिक से अधिक अपमानजनक अर्थ लगाया है। उन्होंने समझौतेका सुझाव दिया। भारतीयोंको चाहिए कि वे "निर्दोष ढंग" से शिनाख्त करनेके कार्य में सहायता करें उपनिवेशके अधिवासियोंके "निर्दोष पंजीयन" की शर्त पर प्रवासके नियमनमें सहयोग करें। "एक संयुक्त समिति स्थापित की जाये और भारतीय नेताओंपर कुछ उत्तरदायित्व सौंपा जाये। यदि ऐसी व्यवस्था न हो तो भारतीयोंको चाहिए कि वे ब्रिटिश प्रजाकी हैसियतसे इस कुप्रथा के विरुद्ध सम्राटसे रक्षाकी माँग करें, जो कि महामहिम उन्हें विदेशमें देनेके लिए बाध्य हैं।"