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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

व्यापारी अधिक क्यों नहीं गिरफ्तार हुए?

यह प्रश्न उठा है। मेरा खयाल है कि सरकारको परवाने के सम्बन्धमें व्यापारियोंको सताना है, इसीलिए शायद श्री ईसप मियाँ आदिको फिलहाल छोड़ दिया है। फिर उन्हें छोड़ देनेका यह कारण भी हो सकता है कि कुछ व्यापारियोंने सरकारको लिखा है कि यदि धरनेदार आदि उपद्रवी लोग हट जायें तो वे कानूनके अधीन होनेको तैयार हैं। इस कारण उनको गिरफ्तार नहीं किया गया ऐसा जान पड़ता है। कुछ ऐसोंको पकड़ा है जिन्होंने लड़ाईमें कोई भाग नहीं लिया है। इसके कारण खोजनेकी इस समय मुझे आवश्यकता नहीं दीखती।

प्रवासी कानूनपर हस्ताक्षर क्यों हुए?

धर-पकड़ हो जाने के कारण प्रवासी कानून मंजूर होने की बात कुछ पीछे पड़ गई है। और उसके बारेमें लोगोंका डर काफूर हो गया है। उस कानूनपर हस्ताक्षर होनेका कारण हम स्वयं हैं, ऐसा मैं मानता हूँ। जैसा कि मैं ऊपर बता चुका हूँ, कई व्यापारियोंने पत्र लिखा है कि यदि कुछ व्यक्ति हट जायें तो वे कानूनके अधीन हो जायेंगे। फिर और कोई पंजीयकके पास किसीकी दो-चार बातें कह आता है। यह सब बढ़ा-बढ़ाकर लॉर्ड एलगिनके पास पहुँचाई जाती हैं कि यदि प्रवासी कानून पास हो जाये तो सभी लोग पंजीयन करा लेंगे। ऐसी बातें लॉर्ड एलगिनके पास पहुँचें और कानूनपर हस्ताक्षर हो जायें तो इसमें क्या आश्चर्य? सन्तोषकी बात यह है कि भारतीय कौम कानूनको डकार गई दीखती है।

कुछ डरपोक

फिर भी कुछ डरपोक निकल आये हैं। इनमें से कुछ थोड़ेसे मेमन पीटर्सबर्गमें बाकी रह गये थे, उनमेंसे कुछकी ओरसे अर्जी पहुँच गई है कि वे अब झुकनेके लिए तैयार हैं। मैं तो ऐसा ही मानूँगा कि ज्यों-ज्यों कष्ट बढ़ेगा त्यों-त्यों इस प्रकारका कूड़ा छँटता जायेगा और जो बच रहेगा वह खरा सोना रहेगा। वे ही कौमकी नावको बन्दरगाहपर पहुँचायेंगे। जो लिहाजके मारे शूर बनते हैं किन्तु असलमें डरपोक हैं वे टिक पायेंगे, ऐसा माननेका कोई कारण नहीं है।

भय व्यर्थ है?

परन्तु ऐसा भय अकारण है। हजारों आदमियोंको देश निकाला होनेवाला नहीं है। और सभी गोरे मानते हैं कि इस कानूनको माननेवालोंकी ट्रान्सवालमें बुरी गत होगी।

प्रवासी कानूनके विनियम

इस अधिनियम के अन्तर्गत जो विनियम बनकर प्रकाशित हुए हैं उनका अनुवाद सम्पादक अन्यत्र देगा। इस समय तो उस अधिनियमकी एक ही अनोखी बातकी चर्चा कर रहा हूँ। उसके अन्तर्गत जो अनुमतिपत्र, पास इत्यादि निकलने वाले हैं उन सबपर दसों अंगुलियाँ लगानी हैं। ये विनियम गोरे-काले सबपर लागू होते हैं। विलायतसे आनेवाले गोरे नौकरोंके पास इस प्रकारका पास होगा तभी वे ट्रान्सवालमें आ सकेंगे। अब सही-सही समझमें आ सकेगा कि खूनी कानूनकी लड़ाई अँगुलियोंकी लड़ाई नहीं है, बल्कि वह कानूनके गुप्त प्रहारके विरोध में है। हम प्रवासकी धाराका विरोध करें सो तो है ही नहीं। फिलहाल तो वह कानून