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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

वैसा ही हमें करना है। गिरफ्तार नहीं किये जायेंगे, यह खबर आनेपर लोग जोशमें आ गये श्री गांधीका कार्यालय घिर गया। भाषण हुए। इसी बीच रास्तेपर यह सभा हुई। इसपर सिपाहोने आकर सूचना दी कि नगरपरिषदकी इजाजतके बिना रास्तेपर सभा नहीं करनी चाहिए। इससे सब बिखर गये। इस समय तो सभी भारतीयोंमें जोश दीख पड़ता है।

देश-निकालेकी आशंका ही नहीं

प्रवासी कानूनके अन्तर्गत दिये जानेवाले देश-निकालेपर श्री लेनर्डने जो राय दी है, पूरी तरह हमारे पक्ष में है; और उससे जाहिर होता है कि भारतीयोंको हरगिज देश-निकाला नहीं दिया जा सकेगा। देनेका विचार किया गया, तो लड़ेंगे। भारतीय अधीर न होकर घरमें जमकर बैठे रहेंगे और जो हानि होगी उसे सहन कर लेंगे तो सब कुछ ठीक हो जायेगा।

हॉस्केनकी सहानुभूति

मंगलवारको श्री हॉस्केन विशेष रूपसे श्री गांधी के कार्यालय में आये, और उन्होंने गद्‍गद् होकर अपनी सहानुभूति प्रकट की। वे भली भाँति समझ गये हैं कि हमारी लड़ाई धार्मिक है। अनेक नामांकित गोरे आपसमें ऐसी ही चर्चा कर रहे हैं। अब तो प्रायः सभी गोरे हितैषी डटकर लड़नेको ही कह रहे हैं।

धोखेबाज भारतीय

डेलागोआ-बेसे खबर आई है कि दो लुटेरे भारतीय ट्रान्सवालसे डेलागोआ-बे गये हैं। वे लोगोंसे कहते हैं कि प्रति व्यक्ति १२ पौंड १० शिलिंग मिलें तो वे श्री चैमनेको डलागोआ-बे बुलाकर अनुमतिपत्र दिला देंगे। इसे मैं बिलकुल झूठ मानता हूँ। श्री चैमने इस प्रकार कभी पंजीयन नहीं कर सकते। मैं प्रत्येक भारतीयसे ऐसे व्यक्तियोंसे सतर्क रहनेकी सिफारिश करता हूँ। ऐसे लोग अनुमतिपत्र नहीं दिला सकते और इस प्रकारके मनुष्य कौमको सरकारकी अपेक्षा अधिक हानि पहुँचाते हैं।

डर्बनमें सरकारकी दगाबाजी

तार आया है कि अपने देशसे आनेवाले भारतीयको डर्बनमें ही गुलामीका चिट्ठा दे दिया जाता है और [तब] वह भारतीय यहाँ आता है। डर्बनके भारतीय बहुत तार करते हैं, बातें करते हैं। मैंने अनेक बार कहा है कि किसी व्यक्तिको देशसे आनेवाले सभी भारतीयोंसे मिलना चाहिए, और उनको कानून समझाना चाहिए। फिर भी कोई इतना आसान काम करता हो, ऐसा नहीं जान पड़ता। तब फिर उनका ट्रान्सवालको ढाढ़स बँधाना किस काम का? मुझे आशा है कि डर्बनमें ऐसा एक भारतीय तो होगा ही कि जो स्टीमरसे उतरनेवाले भारतीयोंसे मिलकर [उनकी योजनाके बारेमें] पूछताछ कर सके। आवश्यक जान पड़े तो ऐसे भारतीयोंसे डेलागोआ-बेमें भी मिलना चाहिए।

पोर्ट एलिजाबेथ

पोर्ट एलिजाबेथके संघने २५ पौंडकी सहायता ब्रिटिश भारतीय संघको भेजी है। यह सधन्यवाद स्वीकृत की जाती है।