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पत्र: एशियाई-पंजीयकको

अवैध निवासी माना जायेगा।" इस प्रकार सरकार एशियाई कानूनका विरोध करनेवालोंको अधिक तंग करना चाहती हैं। ये सब हमारी अवदशाके लक्षण हैं। और इसे समझकर ट्रान्सवालके भारतीय अपना बन्धन तोड़नेके लिए अधिक दृढ़ हुए बिना नहीं रहेंगे।

कैनडलका पत्र

श्री जॉर्डनने फैसला देते हुए जो आलोचना की थी उसके उत्तरमें श्री कैनडलने 'लीडर' में पत्र लिखा है कि "पहले भारतीयोंने एक अँगूठा लगाया था—और वह स्वेच्छासे। इस समय १८ निशान माँगे जाते हैं और सो भी अनिवार्य रूपसे। इसे भारतीय सचमुच धार्मिक आपत्ति मान सकते हैं। सच्चा मुसलमान कभी अपनी सभी अंगुलियाँ नहीं लगायेगा। ऐसा करना मूर्ति चित्रित करने के समान होगा और इस बातकी मुसलमानी मजहबमें मनाही है।"

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ४-१-१९०८

३५५. पत्र: एशियाई-पंजीयकको

[जोहानिसबर्ग]
दिसम्बर ३१, १९०७

सेवामें

एशियाई पंजीयक
[प्रिटोरिया

महोदय,]

मुझे डेलागोआ-बेसे अभी-अभी एक पत्र मिला है। उससे ज्ञात हुआ है कि ट्रान्सवालके कोई दो भारतीय इस समय डेलागोआ-बेमें लोगोंको बरगला रहे हैं। उनका कहना है कि जो भारतीय ट्रान्सवालमें प्रवेशका अनुमतिपत्र पानेके इच्छुक हैं वे यदि उनको प्रति व्यक्ति १२ पौंड १० शिलिंग दें तो आप उन्हें डेलागोआ-बेमें ही अनुमतिपत्र देने को राजी हो जायेंगे।

मुझे कहना न होगा कि मैं उपर्युक्त कथनको, जहाँतक आपका सम्बन्ध है, अपमानजनक मानता हूँ। परन्तु यह निश्चित है कि उक्त भारतीय इस प्रकारकी बात सीधे-सादे लोगोंको अपना शिकार बनाने के लिए ही कहते रहे हैं। अतएव क्या मैं आपसे यह प्रार्थना कर सकता हूँ कि आप जिस प्रकार भी मुनासिब समझें, डेलागोआ-बेके ब्रिटिश भारतीयोंको सूचित कर दें कि वे ऐसे किन्हीं भी लोगोंकी बात सच न मानें। यह भी बता दें कि अनुमतिपत्र या प्रमाणपत्र केवल प्रिटोरियामें आपके कार्यालयमें ही प्राप्त किये जा सकते हैं। अपनी तरफसे मैंने 'इंडियन ओपिनियन' के स्तम्भों तथा अन्य जरियोंसे लोगोंको सावधान करनेकी पूरी कोशिश की है।

[आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ४-१-१९०८