सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/५१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७९
परिशिष्ट
जिन एशियाइयोंके संरक्षक विवरण नहीं दे सके हैं उनके द्वारा सोलह वर्षकी आयु होनेपर प्रार्थनापत्र
७. जब संरक्षक द्वारा विवरण न देनेके कारण किसी एशियाई बच्चेके सम्बन्धमें, जो आठ वर्षसे कम आयुका है, ऐसा विवरण जिसका विधान पिछले खण्डमें किया गया है, पंजिकामें अस्थायी रूपसे दर्ज न किया गया हो तो भी पंजीयनका प्रार्थनापत्र बच्चेकी ओरसे संरक्षक द्वारा ही उस बच्चेकी आयु आठ वर्षकी होनेके बाद एक वर्षके भीतर दे दिया जाना चाहिए, और यदि यह न दिया जाये तो वह उस एशियाई बच्चेको सोलह वर्ष की आयु होनेके बाद एक मासके भीतर अपने निवासके जिलेके आवासी न्यायाधीशके कार्यालय में स्वयं देना चाहिए; उस प्रार्थनापत्रके कागजात और उससे सम्बन्धित सब दस्तावेज पंजीयकको भिजवा दिये जायेंगे जो अपने विवेकाधिकारके अनुसार प्रार्थकि पंजीयनका निर्णय करेगा और उसको या उसके संरक्षकको पंजीयन प्रमाणपत्र देगा।
प्रार्थनापत्र न देनेपर दण्ड
८. (१) जो व्यक्ति किसी एशियाई बच्चेके बारेमें अपनी ओरसे या उस बच्चेके संरक्षकके रूपमें इस अधिनियम के अन्तर्गत प्रार्थनापत्र न देगा, वह अपराधी सिद्ध होनेपर अधिकसे-अधिक सौ पौंड जुर्मानेका और जुर्माना न देनेपर अधिकसे-अधिक तीन मासके सादे या सपरिश्रम कारावासके दण्डका पात्र होगा।
(२) जो व्यक्ति इस उपनिवेशमें सोलह वर्षसे कम आयुके ऐसे एशियाई बच्चेको लायेगा जो यहाँका वैध निवासी न हो, और जो ऐसे बच्चेको किसी व्यापार या व्यवसायमें नियुक्त करेगा, वह अपराधी होगा और अपराध सिद्ध होनेपर नीचे लिखे दण्डोंका पात्र ठहरेगा:
(क) इस खण्डके उपखण्ड (१) में बताये गये दण्डोंका, और
(ख) यदि ऐसे व्यक्तिको पंजीयन प्रमाणपत्र प्राप्त हो तो पंजीयक उसके पंजीयनको रद कर सकेगा; इसपर उपनिवेश सचिव उसको उपनिवेशसे चले जानेका आदेश दे सकता है। ऐसी आज्ञा सन् १९०३ के शान्ति-रक्षा अध्यादेशके खण्ड छ: के अन्तर्गत जारी की गई आशा समझी जायेगी और तदनुसार उक्त अध्यादेशके खण्ड सात और आठ लागू होंगे।
(३) सोलह वर्षसे अधिक आयुका कोई भी एशियाई, जो उपनिवेश सचिव द्वारा 'गज़ट' में घोषित की गई तारीखके बाद उपनिवेशमें पाया जाये, और आगे बताई गई माँग करनेपर अपना पंजीयन प्रमाणपत्र, जिसका वह वैध अधिकारी हो, प्रस्तुत न कर सके, बिना वारंट गिरफ्तार किया जा सकता है और आवासी न्यायाधीशके सम्मुख पेश किया जा सकता है एवं यदि वह उस न्यायाधीशको यह सन्तोष कराने में असमर्थ रहे कि वह पंजीयन प्रमाणपत्रका वैध धारक है, और जिस अवधिके भीतर उसको ऐसे प्रमाणपत्रके लिए प्रार्थनापत्र देना है, वह समाप्त नहीं हुई है, तो न्यायाधीश यदि अगले उपखण्डकी स्थिति लागू न होती हो तो, उसको लिखित आशा देकर उसमें दिये गये समयके भीतर उपनिवेशसे चले जानेका निर्देश करेगा और वह आज्ञा शान्ति-रक्षा अध्यादेशके खण्ड छः के अन्तर्गत दी गई आज्ञा समझी जायगी और तदनुसार उक्त अध्यादेशके खण्ड सात और आठ लागू होंगे।
(४) यदि कोई एशियाई इस अधिनियम में दिये समयके भीतर पंजीयनका प्रार्थनापत्र देनेमें असमर्थ रहा हो, और यदि वह न्यायाधीशके सम्मुख प्रस्तुत किया जानेपर उसको यह सन्तोष दिला सके कि उसकी इस असमर्थताका कोई न कोई सन्तोषजनक और पर्याप्त कारण था, तो न्यायाधीश पहले बताई गई आज्ञा देनेके बजाय ऐसे एशियाईको तुरन्त पंजीयनका प्रार्थनापत्र देनेका निर्देश कर सकता है; और यदि ऐसा एशियाई उस निर्देशका पालन करेगा तो उसका प्रार्थनापत्र सब बातोंमें वैसा ही माना जायेगा मानो वह अधिनियम में दी गई अवधिके भीतर ही दिया गया हो; और इस अधिनियमकी सब धाराएँ वैसे ही लागू होंगी, जैसे प्रार्थनापत्र देनेपर लागू होतीं। किन्तु यदि वह ऐसे निर्देशका पालन करनेमें असमर्थ रहेगा तो न्यायाधीश उसके निष्कासनकी आज्ञा दे देगा, जिसका उल्लेख ऐसे एशियाईके सम्बन्ध में पहले किया जा चुका है।