पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/५१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८१
परिशिष्ट
पंजीयन के प्रार्थनापत्रों और पंजीयन प्रभाणपत्रोंसे सम्बन्धित अपराध
१६. कोई भी व्यक्ति जोः
(१) पंजीयन के प्रार्थनापत्रके उद्देश्यसे या उसके सम्बन्ध में या पंजीयन प्रमाणपत्र प्राप्त करनेके उद्देश्यसे कोई जालसाजीका काम करता है या कोई झूठा बयान देता है या कोई झूठा बहाना करता है या किसी व्यक्तिको ऐसे काम या बयान या बहानेके लिए उत्तेजित करता, सहायता देता या प्रेरित करता है;
(२) कोई जाली पंजीयन प्रमाणपत्र बनाता है;
(३) किसी पंजीयन प्रमाणपत्रको, जिसका वह वैध धारक नहीं है, या किसी जाली पंजीयन प्रमाणपत्रको अपने प्रमाणपत्र के रूप में काम में लाता या काममें लानेका प्रयत्न करता है;
(४) किसी व्यक्तिको उस पंजीयन प्रमाणपत्रको, जिसका वह वैध धारक नहीं है या किसी जाली पंजीयन प्रमाणपत्रको अपने प्रमाणपत्रके रूप में काम में लानेके लिए उत्तेजित करता, सहायता देता और प्रेरित करता है; अधिकसे-अधिक पाँच सौ पौंड जुर्मानेके या जुर्माना न देनेपर अधिकसे-अधिक दो वर्षके सादे या सपरिश्रम कारावासके दण्डका या जुर्माने और कारावास दोनों दण्डों का पात्र होगा।
उपनिवेशमें एशियाइयोंको सीमित काल तक रहनेके परवाने देनेका अधिकार
१७. (१) सन् १९०३ के शान्ति-रक्षा अध्यादेशके किसी भी विधानके बावजूद उपनिवेशमें प्रवेशका परवाना देना-न देना पूरी तरह उपनिवेश-सचिवके निर्णयपर छोड़ दिया गया है; वह विनियमों द्वारा बताये गये रूपमें दिया जा सकता है, एवं उसके द्वारा किसी एशियाईको उपनिवेशमें प्रवेश करने और परवाने में बताई गई अवधितक निवास करनेका अधिकार होगा। इस अवधिकी समाप्तिपर यह माना जायेगा कि जिस व्यक्तिको उस परवाने के द्वारा उपनिवेशमें प्रवेशका अधिकार दिया गया है अब उपनिवेशमें रहनेका उचित अधिकारी नहीं है और यदि वह उसमें रहता हुआ मिलेगा तो बिना वारंट गिरफ्तार कर लिया जायेगा और उक्त अध्यादेशके खण्ड सात और आठका विधान उस व्यक्तिपर ऐसे लागू होगा, मानो उसको निर्दिष्ट अवधि बीत जानेपर उक्त अध्यादेशके खण्ड छः के अन्तर्गत उपनिवेशसे चले जानेकी आज्ञा दी गई हो और वह उस आशाका पालन करने में असमर्थ रहा हो।
(२) उक्त अध्यादेशके खण्ड नौका विधान इस खण्डके अन्तर्गत दिये गये सब परवानोंपर लागू होगा।
(३) इस अधिनियम के लागू होनेकी तारीखसे पहले किसी एशियाईको क्षतिपूर्ति और शान्ति-रक्षा अध्यादेश १९०२ या उसके किसी संशोधनके अन्तर्गत जो परवाना दिया गया हो और जिसमें उसे उपनिवेश में केवल एक सीमित समयतक रहनेका अधिकार बताया गया हो, वह इस खण्डके अन्तर्गत दिया गया परवाना समझा जायेगा।
(४) उपनिवेश सचिव अपने निर्णयसे आज्ञा दे सकता है कि वह व्यक्ति जिसे इस खण्डके अन्तर्गत दिये गये परवानेसे उपनिवेश में प्रवेश और निवासका अधिकार मिला हो, उस परवानेकी अवधिमें मद्य-परवाना अध्यादेश १९०२ या उसके संशोधनके प्रयोजनके लिए रंगदार व्यक्ति नहीं समझा जायेगा; और ऐसी आज्ञा ऐसे परवानेपर दर्ज की जायेगी और वह ऐसे प्रयोजनोंके लिए पूरी तरह लागू होगी।
(५) उपनिवेश-सचिव ऐसी आशा, जैसी पिछले उपखण्डमें बताई गई है, ऐसे किसी भी व्यक्तिके सम्बन्ध में निकाल सकता है जो एशियाई प्रजातिका हो और जो इस अधिनियम की धाराओंके अन्तर्गत न आता हो।
विनियम बनानेका अधिकार
१८. सपरिषद् गवर्नर नीचे दिये गये किसी भी प्रयोजनके लिए समय-समयपर विनियम बना सकता है, उनमें परिवर्तन कर सकता है और उनको रद कर सकता है:
७-३१