१०. अगर लेफ्टिनेंट गवर्नरको यह विश्वास हो जाये कि किसी व्यक्तिको उपनिवेशकी शान्ति और सुशासनके लिए खतरनाक माननेके लिए पर्याप्त कारण मौजूद हैं, तो उसके लिए उस व्यक्तिको उपनिवेश-सचिवके हस्ताक्षरोंसे यह आशा देना वैध होगा कि वह उपनिवेश छोड़कर चला जाये। उस व्यक्तिको उस आज्ञा के मिलनेके बाद उस समयके भीतर, जिसका उल्लेख आशामें किया जायेगा, चला जाना होगा। यदि दिये गये समयको समाप्तिपर वह व्यक्ति उपनिवेशमें रहता हुआ मिलेगा तो उसके विरुद्ध इस अध्यादेशके खण्ड सात और आठमें बताई गई विधिसे कार्रवाई की जायेगी और उसको वे सजाएँ दी जा सकेंगी जिनका विधान उन खण्डोंमें है।
[अंग्रेजीसे]
परिशिष्ट २
प्रार्थनापत्र: चीनी राजदूतको
जोहानिसबर्ग,
अक्तूबर १४, १९०७
परमश्रेष्ठ राजप्रतिनिधि असाधारण
और पूर्ण अधिकार सम्पन्न मन्त्री राजदूत
महामहिम चीन-सम्राट
ट्रान्सवालके संघके अध्यक्षकी हैसियतसे श्री लिअंग क्विन द्वारा प्रस्तुत किया गया प्रार्थनापत्र सविनय निवेदन है कि:
१. आपका प्रार्थी उस चीनी संघका अध्यक्ष है जो ट्रान्सवालकी स्वतन्त्र चीनी आबादीका प्रतिनिधित्व करने के लिए चार वर्ष पूर्व जोहानिसबर्ग में स्थापित किया गया था।
२. इस समय स्वतन्त्र चीनी आबादी अनुभावतः १,१०० से ऊपर है। उनमेंसे अधिकांश जोहानिसबर्ग में बसे हैं।
३. ट्रान्सवालमें रहनेवाले अधिकांश चीनी अच्छी स्थितिके दूकानदार हैं और सभी इस उपनिवेशके पुराने अधिवासी हैं।
४. प्रार्थी परमश्रेष्ठका ध्यान एशियाई कानून संशोधन अधिनियमकी ओर आकर्षित करता है। इसे ट्रान्सवाल विधान सभाने पास किया है। इसकी प्रति संलग्न है।
५. यह विधान पहले गत वर्षके अन्तिम भागमें पास हुआ था और ट्रान्सवालका चीनी समाज इसपर इतना क्षुब्ध हुआ था कि परमश्रेष्ठके पूर्वाधिकारी के समक्ष चीनी पक्ष रखने के लिए उसके एक विशेष प्रतिनिधिको लन्दन भेजना ठीक समझा गया था, जिससे कि ब्रिटिश सरकारके सामने उचित रूपसे सब मामला पेश किया जाये। और आपके प्रार्थीको यह कहते हुए प्रसन्नता होती है कि परमश्रेष्ठ के पूर्वाधिकारीके प्रयत्नोंके परिणामस्वरूप महामहिम सम्राट्ने इस विधानको स्थगित कर दिया था।