६. अब ट्रान्सवालकी नव-निर्वाचित संसदने इसे बड़ी जल्दी में सर्वसम्मतिसे पुनः पास कर दिया था।
७. चीनी संघकी विनम्र सम्मतिमें यह विधान हमारी प्राचीन सभ्यताको और इस तथ्यको स्वीकार करने में सर्वथा असफल है कि हमारा राष्ट्र एक स्वतन्त्र और प्रभुसत्तात्मक राष्ट्र है।
८. यह चीनी प्रजाजनोंको उसी स्तरपर रख देता है जिसपर भारतसे आनेवाले ब्रिटिश प्रजाजन हैं। जहाँ ब्रिटिश सरकारके लिए यह उचित हो सकता है कि वह अपने भारतीय प्रजाजनोंके साथ जैसा चाहे वैसा बर्ताव करे, वहाँ प्रार्थी सादर निवेदन करता है कि चीनी साम्राज्यके प्रजाजनोंके साथ ऐसे ढंगका व्यवहार नहीं होना चाहिए, जो उस साम्राज्यकी शानके खिलाफ हो, जिससे सम्बन्धित होनेका परमश्रेष्ठ के प्रार्थीको सम्मान प्राप्त है और विशेषकर इस तथ्यको सामने रखते हुए कि चीन एक ऐसा राज्य है जिसकी ग्रेट ब्रिटेनसे मैत्री है और ग्रेट ब्रिटेनके प्रजाजनोंको चीनमें अतिप्रिय राष्ट्रका व्यवहार प्राप्त है।
९. एशियाई अधिनियमका मंशा है कि अन्योंके बीच ट्रान्सवालका प्रत्येक चीनी अधिवासी अपमान और भारी जुर्मानोंका शिकार बने और उसके पास पहलेसे जो दस्तावेज हैं, उनके स्थानपर नया पंजीयन प्रमाणपत्र ले। यह चीनियोंको निरीक्षणकी एक ऐसी पद्धतिके अधीन करता है जो सर्वथा पतनकारी है। इसका मंशा है कि माता-पिता अपने १६ वर्षसे कम आयुके बच्चोंका भी पंजीयन अत्यन्त अपमानजनक ढंगसे करायें। इसका मंशा है कि बालिग चीनी पुरुष और उनके बच्चे अपनी अँगुलियोंकी अठारह छापें दें। यह एक ऐसी माँग है जिसके लिए स्वाभाविक अपराधियोंके बारेमें ही जोर दिया जाता है। यह विधान इस धारणापर आगे बढ़ता है कि चीनियोंमेंसे बहुतेरे छलपूर्ण आवेदनपत्र देने में सिद्धहस्त हैं। चीनी संघ इससे सर्वथा इनकार करता है। यह चीनियोंको एक ऐसे स्तरपर गिरा देता है जो कि दक्षिण आफ्रिकाके वतनियों और दूसरे रंगदार लोगोंसे भी नीचा है। संक्षेप में यह एक ऐसा विधान है जिसे स्वतन्त्र मनुष्य नहीं, केवल गुलाम ही स्वीकार कर सकते हैं।
१०. चीनी समाजका भाव ऊपर लिखे अनुसार होनेके कारण, इसने निश्चित किया है कि यह इस अधिनियमके सामने नहीं झुकेगा और कानूनको इस प्रकार भंग करनेके जो भी परिणाम हो सकते हैं उनको यह सहन करेगा। समाजकी समझमें इस कानूनके प्रति सत्याग्रह करनेसे उनका पूर्ण सामाजिक विनाश हो सकता है और प्रत्येक चीनी निर्वासित भी किया जा सकता है। समाजके ९०० से ऊपर सदस्योंने एक हद प्रतिज्ञापत्रपर हस्ताक्षर किये हैं कि वे इस अपमानजनक कानूनको स्वीकार नहीं करेंगे।
११. चीनी संघ स्वीकार करता है कि ट्रान्सवालमें प्रवास नियमित होना चाहिए और ट्रान्सवाल उपनिवेशमें नियम विरुद्ध प्रवेशकी प्रभावशाली ढंगसे रोक होनी चाहिए। और स्थानीय सरकारकी इस कार्य में सहायता करनेके लिए चीनी समाजने स्वेच्छया पंजीयन करानेका प्रस्ताव किया है केवल इसलिए कि चीनी समाजकी सत्यताकी परीक्षा हो जाये। इसके पीछे यह स्वीकार करनेकी भावना नहीं है कि ऐसा कोई पुनःपंजीयन आवश्यक है।
१२. यदि स्वेच्छ्या पंजीयनका प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया जा सकता और ठोस सहायता नहीं दी जा सकती तो चीनी समाजकी रायमें ब्रिटिश सरकारको जोरदार निवेदनपत्र भेजा जाना चाहिए कि प्रत्येक चीनी इस शर्तपर चीन देशको वापस भेज दिया जाये कि उसके निहित अधिकारों जैसे व्यापार, निवास इत्यादिकी हानिके बदले उसे पूर्ण मुभावजा दिया जाये।
१३. अन्तमें प्रार्थी सादर भरोसा करता है कि परमश्रेष्ठ द्वारा ट्रान्सवालमें रहनेवाले चीनी प्रजाजनोंके अधिकारों की पूर्ण रूपते रक्षा होगी और न्याय तथा दयाके इस कार्यके लिए प्रार्थी कर्तव्याधीन होकर सदा दुआ करेगा।
[आपका, आदि,]
लिअंग क्विन
अध्यक्ष
ट्रान्सवाल चीनी संघ
इंडियन ओपिनियन, २६-१०-१९०७