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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/५२

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
१०. नये कानूनके अनुसार काफिर पुलिस नाम और हुलिया मांग सकती है, और उससे

सन्तुष्ट न होनेपर थानपर ले जा सकती है। यदि नाम-हुलिया लेनेपर थानेदारको भी सन्तोष न हो तो वह उक्त एशियाईको कालकोठरीमें बन्द रखकर दूसरे दिन न्यायाधीशके पास ले जा सकता है। वर्तमान कानूनके अन्तर्गत यह सब नहीं हो सकता।

११. इस समय एक दिनके बालकके लिए अनुमतिपत्र लेना आवश्यक नहीं है। इसी

प्रकार उसका नाम हुलिया माँगनेकी भी कोई हिम्मत नहीं कर सकता। नये कानूनके अनुसार उस बालकका नाम-हलिया देकर उसके अभिभावकको वह सब अनुमतिपत्रपर दर्ज करवाना होगा।

१२. आठ वर्षकी आयु पार करनेवाले एशियाई बालक इस समय मुक्त हैं। नये कानूनके अनुसार उपर्युक्त ढंगसे विवरण दर्ज करा देनेके बाद भी बालकके आठ वर्षका होनेपर अभिभावकको फिर अर्जी देनी होगी और नाम-हुलिया देकर पंजीयन करवाना होगा। यदि ऐसा न किया गया तो सजा होगी।
१३. आजकल सोलह वर्षकी आयु होनेपर एशियाई लड़का स्वतन्त्र है और अधिकार

पूर्वक रह सकता है। नये कानूनके अनुसार उस लड़केको पंजीयनपत्र लेना होगा, जिसे देना या न देना पंजीयकके हाथमें है। यदि पंजीयनपत्र न दिया गया तो उसे ट्रान्सवाल छोड़ना पड़ेगा।

१४. अभी सोलह वर्ष से कम आयुवाले लड़केको यदि कोई व्यक्तिले आये तो उसके लिए सजा नहीं है। नये कानूनके अनुसार ऐसा करनेवाले व्यक्तिके लिए कड़ी सजा है। इतना ही नहीं, उसका पंजीयनपत्र रद हो जाता है।
१५. अभी चाहे जो एशियाई व्यापारका परवाना ले सकता है, और उसे अनुमतिपत्र आदि नहीं दिखाने पड़ते। नये कानूनके अनुसार नये पंजीयनपत्र ही नहीं दिखाने होंगे, बल्कि नाम-हुलिया भी देना होगा। यानी किसी भारतीयके दो-चार साझेदार हों तो परवाना-अधिकारी उन सबकी उपस्थितिकी माँग कर सकेगा, और उपस्थित न होनेपर परवाना देनेसे इनकार कर सकेगा।
(१६) इस समय पंजीयककी सत्ता अपेक्षाकृत बहुत कम है। नये कानूनसे, यदि भारतीय उसे मान लेते हैं तो, पंजीयक भारतीयोंका अन्नदाता बन जाता है।
१७. नये काननके अन्तर्गत प्रत्येक भारतीय आवेदन करने के लिए तो बाध्य है ही ऐसा योग्य भारतीय क्वचित् ही हो जो स्वयं अपनी अर्जी लिख सके। अनुमतिपत्रके दलालोंने बहुत कमाई की है, किन्तु यदि भारतीय समाज नये कानूनके सामने झुक गया तो उन्हें तो गड़ा हुआ खजाना ही मिल जायेगा। कमसे-कम आँके और प्रति व्यक्ति तीन पौंड गिनें, तो भी, चूंकि अधिक नहीं तो दस हजार भारतीय अर्जदार तो यहाँ होंगे ही, भारतीयोंकी जेबमें से तीस हजार पौंडका ढेर लगेगा।
१८. ऐसे जुल्मी कानूनको मानकर जो पंजीयनपत्र लेंगे या लिवायेंगे, उनके लिए यही

कहना होगा कि उन लोगोंने उपर्युक्त हिसाबके अनुसार पैसे बँटवा कर भारतीयोंका खून ही बहाया है।