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समितिकी भूल

ऐसे कानूनसे किस भारतीयके रोंगटे नहीं खड़े होते, किस भारतीयका खून नहीं खौलता, यह जाननेके लिए हम आतुर है। और हम नहीं समझ सकते कि कोई भी भारतीय ऐसे कानूनके सामने झुकना चाहेगा। नया कानून गुलामीकी हद है। हम आशा करते हैं कि चाहे जो लाभ होता हो, एक भी भारतीय इस कानूनको स्वीकार नहीं करेगा, और चाहे जैसा नुकसान सहन करके भी उसका सामना करेगा। श्री कैलनबैकने जो लिखा है वह बिलकुल उचित है कि इस कानूनको यदि हम लोग स्वीकार करते हैं तो सब लोग यही समझेंगे कि हम इसके लायक हैं। स्मरण रखना है कि यह कानून भारतीयोंका अपमान ही नहीं करता, हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्मोको कलंकित करता है। कारण, भारतसे आनेवाले हिन्दू-मुसलमानोंपर तो यह कानून लागू होता ही है, इसने उन मुसलमानोंको भी अपनी चपेटमें ले लिया है जो भारतसे नहीं, बल्कि तुर्कीसे (जो यूरोपका हिस्सा माना जाता है) आते हैं, मानो उनके छूट जाने से ट्रान्सवाल-सरकारको कोई अड़चन पड़ जाती। किन्तु उसी देशके ईसाइयोंको कानूनके प्रभावसे मुक्त रखा है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ८-६-१९०७

१४. समितिकी भूल

दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीय समितिने जनरल बोथाके नाम जो पत्र भेजा है वह बहुत अच्छा है और उसमें सब बातोंका समावेश हो जाता है। इस समितिने इतना काम किया है और वह इतनी अच्छी तरहसे किया है कि उसके लिए हम सर मंचरजी', श्री रिच और अन्य सदस्योंका जितना आभार मानें उतना ही कम है। इसीलिए जनरल बोथाके नाम लिखे गये पत्रमें समितिसे जो भूल हो गई है उसे बताते हुए हमें संकोच होता है। फिर भी उसे बतलाना हमारा कर्तव्य है। उससे समितिका मूल्य कम नहीं होता, बल्कि यही सिद्ध होता है कि भूल मनुष्य-मात्रसे होती है। समितिने लिखा है कि भारतीय कौमकी मर्जी होगी तो वह अँगुलियोंकी निशानीकी जगह फोटो दे सकती है। समितिकी यही भूल है। फोटो देना या न देना भारतीयोंकी मर्जीपर छोड़ा गया है, फिर भी हम मानते है कि समितिकी ओरसे ऐसी सूचना दी ही नहीं जानी चाहिए थी। इसके अलावा समितिके पत्रसे यह भी भासित होता है कि नये कानूनके सम्बन्धमें मानो सबसे बड़ी और केवल यही आपत्ति है कि अँगुलियाँ लगवाई जायेंगी। सच कहा जाये तो अँगुलियोंकी

[१] हरमान कैलनबैक, एक जर्मन वास्तुकार; ये गांधीजीके मित्र बन गये थे और उनके साथ सादे जीवनके प्रयोगमें शामिल हो गये थे। इन्होंने दक्षिण आफ्रिकाके अनाक्रामक प्रतिरोधके समय जेल यात्रा की थी। देखिए दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास, अध्याय २३, ३३-३५।

[२] देखिए “ जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ३०-३१।।

[३] सर मंचरजी मेरवानजी भावनगरी (१८५१-१९३३); भारतीय वैरिस्टर, संसद-सदस्य तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी ब्रिटिश समितिके सदस्य। देखिए खण्ड २, पृष्ठ ४२०।

[४] एल० डब्ल्यू० रिच, लन्दन-स्थित दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिके मन्त्री।

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