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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/५४

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

निशानी केवल एक बात है। मुख्य बात तो यह है कि यह कानून अनिवार्यताके तत्त्वको लेकर भारतीय समाजको कलंकित करता है और उसे हलके दर्जेका समझता है।

फिर भी इस भूलसे कुछ नुकसान होना सम्भव नहीं। विधेयकके खिलाफ की गई लड़ाईके समय यह गलती नहीं हुई। कानून बन जाने के बाद समितिकी सूचनाका कुछ भी असर होना सम्भव नहीं। क्योंकि, आगेका मामला तो भारतीय कौमके हाथ में है। यह कानून यदि भारतीय समाजको दरअसल पसन्द न हो तो चाहे जितने संकट आयें, फिर भी वह उसे स्वीकार नहीं करेगा, बल्कि उसके परिणामस्वरूप जेल भोगेगा तथा उसीमें सुख मानेगा, क्योंकि उससे उसकी प्रतिष्ठा रहेगी।

श्री रिच लिखते हैं कि भारतीय कौमके दृढ़ निश्चयसे जैसे श्री रीज़' समितिसे निकल गये वैसे ही और भी कुछ लोग निकल सकते हैं और वे हमें कालिख लगवानेकी सलाह दे सकते हैं। इससे डरनेकी जरूरत नहीं, क्योंकि कानूनके सामने न झुकनेको ही भारतीय समाज अच्छा काम मानता है और अच्छा काम करने में किसीका डर रखनेकी जरूरत नहीं रहती। भगवान सदा सच्चेका रक्षक रहा है, यह समझकर ट्रान्सवालके भारतीयोंने जो सीधा मार्ग अपनाया है उसपर उन्हें कायम रहना चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ८-६-१९०७

१५. केपके भारतीय

हम देख रहे हैं कि केपके भारतीयोंकी हालत बहुत बुरी होनेवाली है। मेफेकिंगसे आया हुआ पत्र हमने इस अंकमें अन्यत्र दिया है। केपके प्रत्येक भारतीय नेताका ध्यान हम उस ओर आकर्षित कर रहे हैं। केपके कानूनकी सबसे बुरी धारा यह है कि उसके कारण पास लिये बिना जो भारतीय केप छोड़कर जायेगा वह लौटकर नहीं आ सकेगा। वह पास केवल एक वर्ष चल सकता है। सैकड़ों भारतीय पासके सम्बन्धमें कुछ नहीं जानते। और पास लिया हो तो भी यह नहीं होता कि पास लेनेकी तारीखसे एक वर्ष में सब वापस लौट आयें। इस कानूनसे सम्भव है कि पाँच वर्षके अन्दर केपमें से भारतीय खदेड़ दिये जायेंगे। हम आशा करते हैं कि केपके अग्रणी भारतीय इस विषयपर खूब ध्यान देंगे और तत्काल प्रभाव दिखानेवाला उपाय काममें लायेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ८-६-१९०७

[] जे० डी० रीज, देखिए खण्ड ६, पृष्ठ ४२०।

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