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परिशिष्ट ५
दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समिति

२८, क्वीन ऐन्स चेम्बर्स, ब्रॉडवे
वेस्टमिन्स्टर, एस॰ डब्ल्यू॰
अगस्त १४, १९०७

सेवामें

परममाननीय सर हेनरी कैम्बेल बैनरमैन, जी॰ सी॰ बी॰ पी॰ सी॰, ऐंड सी॰

प्रधान मन्त्री
महोदय,

मेरी समितिका एक शिष्टमण्डल आपकी सेवामें उपस्थित होनेका इच्छुक है। उसके नामोंकी सूची मैं साथ बन्द कर रहा हूँ। उसका उद्देश्य यह है कि ट्रान्सवाल उपनिवेश में अपने साथी भारतीय प्रजाजनोंकी स्थिति और उनके प्रति होनेवाले व्यवहारके बारेमें अपने विचार सादर आपके समक्ष रखे।

वे चाहते हैं कि मैं, प्रस्तावनाके रूपमें, निम्नलिखित तथ्य आपके सामने रखूँ:

इस उपनिवेशकी ब्रिटिश भारतीय जनसंख्या, हालकी जनगणना के अनुसार १०,००० है। और जैसा कि आगे चलकर दिखाया जायेगा, यह लगभग स्थिर है। इसमें अधिक संख्या व्यापारी वर्गकी है और वे दूकानदार और फेरीवाले हैं। शेष माली, देशी सुनार, दर्जी इत्यादि दिखाये गये हैं। भारतीय कुली, खनिक या कारीगर नहीं-से हैं।

आपको मालूम होगा कि "एशियाई" (ब्रिटिश भारतीयों सहित) भूतपूर्व ट्रान्सवाल सरकार द्वारा कतिपय निर्योग्यताओं के शिकार बनाये गये थे। ये उनके अतिरिक्त थीं जिनके गैर-एशियाई विदेशी भी भागीदार थे; और १८८५ का कानून ३ यद्यपि राज्यमें एशियाई प्रवासपर रोक नहीं लगाता था तथापि ३ पौंडका पंजीयन शुल्क लादता था, नागरिकता प्राप्त करनेके अधिकारसे वंचित रखता था, उनके अपने नामोंपर अचल सम्पत्तिफा पंजीयन वर्जित करता था और कतिपय बाजारों, कक्षों और बस्तियों में निर्वासित होकर रहने के लिए जवाबदेह बनाता था। ये निर्योग्यताएँ, विशेषकर नागरिकता प्राप्त करनेके अधिकारसे वंचित रखा जाना, निस्सन्देह बहुत-कुछ रंग-विद्वेषके कारण थीं। प्राचीन कानूनके अधीन श्वेत और रंगदार लोगों के बीच स्पष्ट रूपसे एक रेखा खींच दी गई थी। उसमें यह लिखा है कि "रंगदार और श्वेत के बीच कोई बराबरी नहीं बरती जायेगी"।

इस भेद करनेवाले विधानके विरुद्ध महामहिमके मन्त्रियोंने, जिनमें लॉर्ड डर्बी और श्री चैम्बरलेन उल्लेखनीय हैं, ट्रान्सवालकी सरकार के पास समय-समयपर विभिन्न प्रस्ताव और प्रतिवाद भेजे हैं। २० जुलाई, १९०४ के एक खरीतेमें, जिसे परममाननीय अल्फ्रेड लिटिलटनने उच्चायुक्तके नाम भेजा था, ये बहुत अच्छी तरह संक्षिप्त रूपमें वर्णित हैं:

"इसलिए युद्धके आरम्भ तक ब्रिटिश सरकारने लगातार पहले अधिकारके रूपमें और फिर १८९५ के पंच-फैसलेके अनुसार कूटनीतिक प्रयत्नोंसे ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय अधिवासियोंके हितोंको कायम रखा; और सहप्रजाजनोंके प्रति व्यवहार विगत दक्षिण आफ्रिकी गणराज्य के विरुद्ध ब्रिटिश मामलेका एक अंग था।"

बेशक आपको यह स्मरण दिलाना भी अनावश्यक है कि युद्धके दिनोंमें दक्षिण आफ्रिका के अधिवासी ब्रिटिश भारतीयोंने स्वेच्छापूर्वक कैसी महत्वपूर्ण चिकित्सा सेवा और अन्य सेवाएँ की थीं। जो ट्रान्सवालमें रहते थे