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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/५३५

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परिशिष्ट


नये अधिनियमसे सम्पूर्ण ब्रिटिश भारतीय समाजमें अत्यधिक रोष पैदा हो गया है और इसने इस साधारणतया विनम्र और कानून माननेवाली जातिको बिलकुल अभूतपूर्व ढंगसे उभाड़ दिया है। वह समाज मुख्यतया निम्नलिखित आधारोंपर इसका विरोध करता है:

(१) यह उस आश्वासनको तोड़ता है जो उच्चायुक्तने, उन्हें १९०३ में दिया था, जब कि वे स्वेच्छया पुनः पंजीयन के लिए तैयार हो गये थे।

(२) यह उनके इस देशमें रहनेके वर्तमान अधिकारको रद कर देता है और कलमके एक आघातसे वर्तमान अनुमतिपत्रों और प्रमाणपत्रोंको बेकार बना देता है; और जिनके पास वे हैं उनके ऊपर उनके अधिकारी होनेका सबूत देने की जिम्मेदारी डालता है।

(३) श्वेत उपनिवेशियोंके पूर्वग्रहों का ध्यान रखते हुए उन्होंने जो स्वेच्छया पंजीयन स्वीकार किया था, उसके स्थानपर यह उनके ऊपर अत्यन्त अपमानजनक स्थितिमें अनिवार्य पंजीयन लादता है। ब्रिटिश भारतीय जो कि भावुक हैं, उनको यह विद्रोही बनाता है और समाजके रूपमें उन्हें दक्षिण आफ्रिकी जंगलियोंके स्तरपर ला देता है। वे कानून द्वारा एक निम्न कोटिकी अपराधी जातिके बना दिये जाते हैं।

(४) उन्हें भय है कि यह उनके ऊपर और उनकी स्वाधीनताके ऊपर और भी अधिक नियन्त्रण लागू करनेका पूर्वाभास है और दक्षिण आफ्रिकाके दूसरे उपनिवेशों में इसी प्रकार के विधान लागू करनेका बहाना है।

(५) यह पहलेसे ही उन्हें इस अपराध में शामिल होनेका मुलजिम मान लेता है कि उन्होंने इस उपनिवेशको एशियाइयोंसे भर दिया है। इस इल्जामसे उन्होंने बराबर इनकार किया है और इसके बारेमें उन्होंने जाँच आयोगकी माँग की है।

(६) यह एक प्रतिक्रियावादी विधान है और सर्वोच्च ब्रिटिश परम्पराओंके विरुद्ध है।

इस प्रकार इस समाजकी आपत्ति पुनः पंजीयन करानेपर नहीं है। उसके लिए तो उन्होंने स्वेच्छया पंजीयन करानेका वचन दिया है। दरअसल उन्हें आपत्ति है, ऐसे भेदभावपूर्ण वर्ग-विधान के परिणामस्वरूप उन्हें जो जातीय अपमान और पतनका अनुभव होता है, उसके विरुद्ध।

हाल ही में ब्रिटिश भारतीयोंकी सार्वजनिक सभाएँ हुई हैं, जिनमें उपस्थिति दो हजार तक गई है। उनमें अच्छी स्थिति और महत्त्वके दूकानदारोंने और अच्छे व्यापारियों और फेरीवालोंने गम्भीरतापूर्वक प्रतिज्ञाएँ को हैं कि वे इस कानूनके अन्तिम दण्डको स्वीकार करेंगे और अपनी व्यक्तिगत स्वाधीनता ही नहीं, बल्कि उनके पास जो कुछ भी सांसारिक सम्पत्ति है उसका, नये विधानकी शर्तोंके अनुसार पुनः पंजीयन करानेके बजाय, बलिदान कर देंगे। प्रिटोरिया के एशियाइयोंको सूचना दी गई थी कि उन्हें वर्तमान मासके प्रारम्भ होनेसे पहले नये प्रमाणपत्रों के लिए अवश्य ही प्रार्थनापत्र दे देना चाहिए। उन्होंने भारी जुर्मानों और निर्वासनकी सजा भोगना पसन्द किया है, परन्तु इससे कहाईके साथ दूर रहे हैं।

मेरी समितिके प्रतिवेदनों के अतिरिक्त स्वयं ब्रिटिश भारतीयोंने ट्रान्सवालकी सरकारके समक्ष विभिन्न प्रार्थनापत्र भेजे हैं जिनमें उन्होंने प्रार्थनाएँ की हैं कि इस मामलेपर उनके दृष्टिकोणसे विचार किया जाये, परन्तु इसका कुछ परिणाम नहीं हुआ।

मेरी समितिका मत है उसका सादर निवेदन है कि, कि वह समय आ गया है जब साम्राज्य सरकारको हस्तक्षेप करना चाहिए और उसकी विनम्र सम्मतिमें, ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंको वे अधिकार अभीतक नहीं दिये गये हैं जिनके वे साम्राज्य की सभ्य प्रजा होनेके नाते अधिकारी हैं और न अभी उन्हें महामहिमकी सरकार से वह संरक्षण मिला है जो ट्रान्सवाल्पर ब्रिटेनका अधिकार हो जानेके बाद और अधिक नियोग्यताओंके लादे जानेसे मिलना चाहिए।

ब्रिटिश भारतीयोंकी माँगें अत्यन्त साधारण हैं:

(१) उस नये कानूनका रद किया जाना जिसके अनुसार नये सिरे से पंजीयन अनिवार्य है; और उसके स्थानपर उनके स्वेच्छया पंजीयनके वचनका स्वीकार किया जाना। वर्तमान प्रमाणपत्रोंका नये प्रलेखके बदले में जो कि आपसी समझौते अनुसार हो, दे दिया जाना। स्वेच्छया पंजीयन न करानेकी