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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

दशामें (यदि ऐसा कोई हो, जिसकी सम्भावना बिलकुल नहीं है) एक छोटा-सा अधिनियम होना चाहिए जिससे जिन एशियाइयों के पास नये प्रमाणपत्र न हों, वे निर्वासित किये जा सकें।

(२) १८८५ का कानून ३ जहाँतक इसका ब्रिटिश भारतीयोंसे सम्बन्ध हैं, रद कर दिया जाये; परन्तु

(क) यूरोपीय उपनिवेशका एशियाइयोंकी बाढ़को रोकनेका अधिकार स्वीकार किया जाता है। ऐसा नियन्त्रण अब शान्ति-रक्षा अध्यादेश के अन्तर्गत हो रहा है और राजपत्रमें एक प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयककी सूचना छप चुकी है। इससे ऐसा प्रवास और भी सीमित किया जा सकेगा।

(ख) परवाना निकाय द्वारा (उसके निर्णयके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील्के अधिकारके साथ) व्यापारी परवानोंके जारी करनेपर नियन्त्रणका सिद्धान्त इसी प्रकार स्वीकार किया जाता है।

(ग) श्वेत उपनिवेशियोंके वर्तमान पूर्वग्रहों को ध्यान में रखते हुए न तो राजनीतिक और न नगर-पालिका सम्बन्धी किसी अधिकारकी माँग की जाती है।

कदाचित यहाँ यह कहना अनावश्यक होगा कि यह मामला केवल ऐसा घरेलू नहीं है कि इससे उपनिवेशका ही सम्बन्ध हो, बल्कि यह सर्वोच्च साम्राज्यीय महत्त्वका है और इसके परिणाम बहुत दूर तक जा सकते हैं।

हमें आशा और भरोसा है कि इस मामलेमें ब्रिटिश भारतीयोंकी ओरसे महामहिमकी सरकार द्वारा ट्रान्सवालकी सरकार के साथ मैत्रीपूर्ण लिखा-पढ़ी वान्छनीय प्रभाव पैदा करेगी। मुझे यह भी निवेदन करनेके लिए कहा गया है कि यदि आप शिष्टमण्डलले मिलना स्वीकार करें, तो कृपापूर्वक वैकल्पिक तारीखें दें; क्योंकि समितिके कुछ सदस्यों के पास विभिन्न व्यवसाय हैं, जिनको स्थगित करना उनके लिए असम्भव हो सकता है।

आपका आदि,
एल॰ डब्ल्यू॰ रिच
मन्त्री

[अंग्रेजीसे]
इंडिया ऑफिस रेकर्डस, जे॰ ऐंड पी॰ ३९२७/०७

परिशिष्ट ६
दस गिन्नियोंका पारितोषिक
'अनाक्रामक प्रतिरोधका नीतिशास्त्र' पर एक निबन्धके लिए

भारतीय इस समय ट्रान्सवालमें एक ऐसे अधिनियम के विरुद्ध अनाक्रामक प्रतिरोध-संग्राम लड़ रहे हैं, जो उनकी सम्मतिमें उनकी आत्माको चोट पहुँचाता है, और इस पत्रने उस अनाक्रामक प्रतिरोध-संग्रामको एक विनम्र तरीकेसे रास्ता दिखलाया है; दूसरे इस पत्र की नीतिके नियंत्रक अनाक्रामक प्रतिरोध सिद्धान्तकी सामान्य उपयोगिता प्रदर्शित करनेको इच्छुक हैं। इन दोनों कारणोंसे इसके प्रबन्धकोंने 'अनाक्रामक प्रतिरोधके नीतिशास्त्र' पर सर्वोत्तम निबन्धके लिए १० गिन्नियोंका पुरस्कार देनेका निश्चय किया है। इस पुरस्कारकी घोषणा इस लेख द्वारा की जाती है। धार्मिक रूपसे विचार करें, तो इस सिद्धान्तका अर्थ है, ईसाके इस प्रसिद्ध उपदेशका पालन करना कि 'पापका प्रतिरोध मत करो।' इस तरह यह सनातन और विश्वव्यापी प्रयोगकी बात है और यदि इसका अभ्यास बड़े पैमानेपर किया जाये तो यह पूर्णतया नहीं तो बड़ी हद तक कष्टोंसे मुक्ति प्राप्त करने या सुधारोंकी संस्थापना करने में पशुवल और वैसे ही तरीकोंका स्थान ले लेगा । इसलिए प्रबन्धकोंको आशा है कि दक्षिण आफ्रिका के अच्छेसे अच्छे लोग, जिनके पास अवकाश हो, इस पुरस्कार प्रतियोगिता में भाग लेंगे। ये इस पुरस्कार के आर्थिक महत्त्वकी