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१६. स्वर्गीय कार्ल ब्लाइंड

श्री कार्ल ब्लाइंडके निधनका समाचार तारसे मिला है। वे एक प्रसिद्ध जर्मन थे। उनका जन्म सन् १८२६ में हुआ था। स्वतन्त्रताके लिए और अन्य लोगोंके अधिकारोंके लिए उन्होंने १८४७ से १८४९ के बीच पाँच बार कारावास भोगा था। यह कारावास उन्हें सरकारका विरोध करनेके कारण भोगना पड़ा था। एक बार तो सार्वजनिक कार्यके लिए उन्हें फाँसी तक की सजा दी गई थी, किन्तु वे बच गये। बादमें आठ वर्षकी जेल और भोगी। अन्त में लोगोंने उन्हें जबरदस्ती छुड़ाया। वे महापुरुष मैज़िनी और गैरीबाल्डीके मित्र थे। उन्होंने जापानको रूसके खिलाफ मदद दी। स्वयं बहुत विद्वान थे। उन्होंने इतिहासकी बहुत-सी पुस्तकें लिखी है। भारतसे उनको प्रेम था। इतना विद्वान आदमी दुसरोंके दुःखके लिए जेलका कष्ट भोगे और फाँसीपर लटकनेको भी तैयार हो, ऐसे उदाहरण हमारे लिए बहुत ही कामके हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ८-६-१९०७

१७. हिन्दू विधवाएँ क्या कर सकती हैं?

भारतमें बहुत-सी सम्पदा बेकार जाती है, यह कोई भी देख सकता है। इस सम्पदामें सब चीजें आ जाती है। खनिज पदार्थोकी कोई परवाह नहीं करता। हमारी रुई परदेश जाती है और वहाँसे कपड़ा आता है। आलपिन जैसी चीज भी हम विदेशोंसे लेते हैं। जो हाल पैसेरूपी सम्पदाका है वही मनुष्यरूपी सम्पदाका दिखाई देता है। बहुतेरे बाबाजी और फकीर भीख मांगकर ही गुजर करते हैं। किन्तु वे देशके या अपने किसी भी काम नहीं आते। क्योंकि इस प्रकार भीख मांगनेसे यह नहीं माना जायेगा कि उन्होंने सच्चा वैराग्य या फकीरी ली है। इसी तरह, खासकर हिन्दुओंमें, विधवा औरतें हजारों हैं, जिनका जीवन बिलकुल बेकार जाता है, और उस हद तक भारतीय सम्पदा नष्ट होती है। उसे रोकनके विचारसे पूनाके एक परोपकारी प्रोफेसर कर्बेने देशको अपना जीवन समर्पित कर दिया है। वे फर्ग्यसन कॉलेजमें जीवन-निर्वाह-भर को पैसे लेकर काम करते हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने पूनामें विधवाओंकी शिक्षाके लिए कुछ वर्षोंसे एक संस्था बना रखी है, जहाँ विधवा स्त्रियोंको दाई या डाक्टरीका काम सिखाया जाता है। इस संस्थाका काम दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। वे स्वयं उसमें बिना पैसा लिये काम करते हैं, इसलिए उन्हें

[१] जर्मनीके एक क्रान्तिकारी, जो बादमें इंग्लैंडमें बस गये थे और निरन्तर राजनीतिक स्वतंत्रताका समर्थन करते रहे थे।

[२] ज्युलैपी गैरीवाल्डी (१८०७-८२); इटलीके देशभक्त और सैनिक, जिन्होंने जपने देशकी स्वाधीनताके लिए संघर्ष किया था।

[३] आचार्य धोंडो केशव कर्वे (१८५८- ), वीमेन्स यूनिवर्सिटी, पूनाके प्रतिष्ठाता।

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