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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/५४९

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परिशिष्ट

तारीखको लागू किसी भी कानूनके अन्तर्गत दण्डनीय होगा। उसके अन्तर्गत वह, यदि उपनिवेशमें मिले तो, निष्कासित किया जा सकता है या उसको उपनिवेशसे जानेकी आज्ञा दी जा सकती है, चाहे उसे उस कानूनको तोड़ने पर सजा दी गई हो या उसकी धाराओंका पालन न करनेपर सजा दी गई हो या अन्यथा सजा दी गई हो।" अन्तमें विधेयकके खण्ड (६) के अन्तर्गत वह "निषिद्ध प्रवासी" हो जाता है और उस रूपमें "किसी भी व्यक्तिको, जिसे मन्त्री उचित कारणसे शान्ति, व्यवस्था और उपनिवेशके सुशासनके लिए खतरनाक समझता है, यदि वह वहाँ रहता है तो," बलात् निर्वासित किया जा सकता है।

यह आपत्ति की जाती है, और बिना कुछ कारण बताये नहीं, कि अन्तमें बताई गई धाराएँ एशियाई कानून संशोधन अधिनियम के विरुद्ध सत्याग्रह करनेवाले लोगों और उनके नेताओंके विरुद्ध लागू की जाती है।

बुद्धिमत्तापूर्वक यह व्यवस्था भी की गई है कि इस कानून के पीड़ितोंको वह सब खर्च भी देना होगा जिसे सरकार उनको उपनिवेशसे या दक्षिण आफ्रिका से निकालने में या निकालनेसे पूर्व उपनिवेश में या अन्यत्र किसी नजरबन्दी शिविर में रखने में करेगी। इस खर्चकी रकम विभागके किसी अधिकारी द्वारा ऐसा प्रमाणपत्र, जिसमें उस खर्चेकी विगत और पूरी रकम हो, शेरिफके सामने पेश करनेपर उस दण्डित व्यक्तिकी उपनिवेशमें जो सम्पत्ति होगी उसकी कुर्कीसे वसूल की जायेगी और उसकी कुर्की करनेका तरीका सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार होगा।

कारण

यदि यह पूछा जाये कि सम्मानित ब्रिटिश एशियाइयोंके प्रति इस अनुचित शत्रुताकी जनक-शक्ति क्या है, तो उसका उत्तर केवल एक ही हो सकता है। १८८५ से अबतक के कानूनोंके और इस विषयमें जो कुछ कहा या लिखा गया है उसके निरीक्षणसे यह पर्याप्त रूपसे स्पष्ट हो जाता है कि यह चिल्लाहट मुख्यतः व्यापारिक ईर्ष्याका प्रकट रूप है। यह ध्यानमें आ जायेगा कि अबतक आक्रमणका लक्ष्य व्यापारिक परवाने रहे हैं। गणराज्यके विधायकोंको उन यूरोपीय दूकानदारोंने १८८५ का कानून ३ बनानेके लिए उकसाया जो अपने इन अरक्षित प्रतिस्पर्धियोंसे मुक्त होनेके लिए चिन्तित थे। बॉक्सवर्ग, क्रूगर्सडॉर्प, पॉचेफ्स्ट्रम और ऐसे ही अन्य नगरोंके "श्वेत-संधियों" की चिल्लाहटसे ऊपर "कुलियोंको परवाने नहीं" की पुकार गूँजती है। १९०३ में एशियाइयोंको बाजारोंमें भेजनेका प्रयत्न ट्रान्सवाल सरकारके विरुद्ध हबीब मोटनके उस परीक्षात्मक मुकदमे के बाद लगभग त्याग दिया गया जिसमें बाजारों और बस्तियोंके बाहर एशियाइयोंका व्यापार करनेका अधिकार स्थापित हो गया था। नये पंजीयन अधिनियमसे उन एशियाइयोंके, जो उसकी धाराओंका पालन न करें, व्यापारिक परवाने नये न किये जानेका खतरा है।

किन्तु केवल व्यापारिक स्पर्धा कदाचित विधानमण्डलको कार्रवाईकी प्रेरणा देनेके लिए पर्याप्त न होती। इसलिए रंग-विद्वेषसे अपील की गई है जो प्रत्यक्षतः दक्षिण आफ्रिकाकी ही उपज है और वर्तमान रंगदार आबादी के कारण जो स्थिति इस समय भी खतरनाक है, वह रंगदार आबादीके अतिरिक्त एक स्थायी एशियाई तत्त्वकी उपस्थिति और भी उलझ जायेगी, यह संकेत देकर उपनिवेशियोंकी कल्पनाको भड़काया गया है। यह तर्क प्रत्यक्षतः युद्ध पूर्वके वचनों और दायित्वोंकी समाप्तिको और उसके फलस्वरूप सस्ती बुद्धिमत्ताकी वेदीपर ब्रिटिश भारतीयोंकी छोटी-सी आबादीके उत्पीड़नको उचित सिद्ध करनेके लिए पर्याप्त हुआ है। एक मताधिकारविहीन अल्पसंख्यक समाजकी जो ट्रान्सवालकी गोरी आबादीके पाँच प्रतिशत से भी कम है और जिसे नगरपालिकाओं में या राजनीतिक संस्थाओं में कोई प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है, साम्राज्यके सभ्य नागरिकोंके रूपमें उचित बर्तावकी सामान्य माँग भी निर्दयतापूर्वक अमान्य कर दी गई है। सर आर्थर लालीके कथनानुसार उन्हें युद्धसे पहले उनके मामलेके माने हुए हिमायतियोंने जो आशाएँ बँधाई थीं और जो वचन दिये थे, उनको पूरा करनेके बजाय तोड़ा गया है, यह कहना अधिक ठीक होगा।

भारतीय-विरोधी कानूनकी गुरुता कम बतानेके उद्देश्यसे यह जोर देकर कहा गया है कि इसको समस्त गोरी आबादीकी सर्वसम्मत स्वीकृति प्राप्त है। किन्तु इस कथनपर गम्भीर सन्देह किया जा सकता है। दूसरी ओर यह कहा जा सकता है कि जो लोग स्वार्थपूर्ण कारणोंसे भारतीय प्रतिस्पर्थियों को हटाने में दिलचस्पी