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परिशिष्ट
उत्तरदायी ब्रिटिश मंत्री ब्रिटिश भारतीयोंके लिए साम्राज्यके सभ्य प्रजाजनोंके बराबर अधिकारोंका दावा करते थे। ब्रिटिश सरकारने तत्त्वतः वचन दिया था कि वह ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंको उनके उचित अधिकार दिलायेगी। ब्रिटिश सरकारने प्रत्यक्षतः उन्हीं भारतीयोंको, जो उपनिवेशको मिलानेसे पूर्व उसमें रहते थे उनके व्यापारिक प्रतिस्पर्धियों और उस सरकारके अत्याचारोंपर छोड़ दिया है जो बहुत-कुछ उन्हीं विधायकोंकी बनी है, जिन्होंने १८८५ का बोअर कानून ३ बनाया था।
साम्राज्य सरकार बोअर कानूनके विरुद्ध भारतीयोंकी शिकायतोंका समर्थन करती थी और जिन कारणोंसे लड़ाई हुई उन कारणोंमें एक मुख्य कारण गणतन्त्रीय सरकारका अपनी सीमाओंके भीतर रहनेवाले एशियाइयोंके विरुद्ध भेदभावकारी कानून बनानेके अधिकारपर आग्रह करना था। उपनिवेशकी सरकार की धमकियोंके अनुसार पंजीयन अधिनियम के विरुद्ध भारतीयों के सत्याग्रहका परिणाम उपनिवेशसे उनका निष्कासन होगा। सरकारको इसके लिए आवश्यक अधिकार प्रवासी- प्रतिबन्धक अधिनियमसे प्राप्त होंगे
सामान्यतः ब्रिटिश भारतीयोंपर जब कि सिद्धान्ततः ये निर्योग्यताएँ लगी हुई थीं, व्यवहार में इस कानूनको कड़ाईसे लागू नहीं किया जाता था। ब्रिटिश भारतीयोंकी स्वतन्त्रतापर अत्यन्त कठोर प्रतिबन्ध लगे हुए हैं और ब्रिटिश भारतीय इसके निकृष्टतम दुष्परिणामोंसे केवल इसलिए बचे हुए हैं क्योंकि १८८५ के कानून ३ में दण्डात्मक धारा नहीं है।

अन्तमें इससे यह बात भली भाँति समझमें आ जायेगी कि इन सब बातोंकी ओर संकेत करनेकी और युद्ध से पहले दिये गये वचनों एवं युद्ध के पश्चात् किये गये कार्योंकी असंगतिपर विचार करनेका लोभ क्यों हुआ। जिस सरकारको एक शक्तिशाली बहुसंख्याका समर्थन प्राप्त है उसका कर्तव्य है कि वह एक नितान्त प्रतिनिधित्वहीन रंगदार अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करे। इसके अतिरिक्त भी यह लुभावना प्रश्न उठता है; साम्राज्य परिवारके प्रत्येक सदस्यका कर्तव्य है कि वह विशुद्ध स्थानीय स्वार्थोंको—पक्षपात और पूर्वग्रहकी तो बात ही क्या—समस्त साम्राज्यके कल्याण-क्षेमसे गौण माने। किन्तु यहाँ यह बताना काफी होना चाहिए कि ट्रान्सवालकी नीतिमें ऐसे विचारोंको प्रत्यक्षतः कोई स्थान उपलब्ध नहीं हुवा। ट्रान्सवालमें मुश्किलसे ढाई लाख गोरे होंगे; किन्तु फिर भी वह भारतके तीस करोड़ लोगोंके प्रतिनिधियोंका अपमानपर अपमान करके साम्राज्यकी सत्ता और प्रतिष्ठाको खतरे में डालनेसे नहीं हिचकिचाया है।

[अंग्रेजीसे]
इंडिया आफिस रेकर्डस, जे॰ ऐंड॰ पी॰ ३९२७/०७।