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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

उठानेको तैयार हैं, मैं मानता हूँ कि ऐसे भारतीयोंसे सहानुभूति रखनेवाले तथा उनकी प्रशंसा करनेवाले गोरे बहुत हैं।

मैं जानता हूँ कि विभिन्न लोगोंमें आवश्यकतासे अधिक होड़ चलती है। लेकिन मैंने यह देखा है कि युरोपीय लोग उसे बहुत ही बड़ी रूप देते हैं। ब्रिटिश भारतीय संघने जो सूचना दी है, मैं मानता हूँ कि वह बहुत ही उचित है और यदि सरकारने संघकी सलाह मानी होती तो आज जो नाजक परिस्थिति पैदा हुई है, वह न होती।

अन्तमें मैं यह भी कहता हूँ कि मैं तो अपने भारतीय भित्रोंसे कैदखाने में मिलने भी जाऊँगा, उनकी तकलीफें कम करने के लिए जो भी करना उचित होगा वह करूंगा तथा उसमें मुझे आनन्द और अभिमान महसूस होगा ...।

श्री कैलनबैक इतने उम्दा पत्रके लिए बधाईके पात्र हैं। उनके जैसे और भी गोरे निकलें तो आश्चर्य नहीं। अभी तो हमने कुछ करके नहीं दिखाया, फिर भी श्री कैलनबैक जैसे सज्जन अपनी सहानुभूति व्यक्त करने के लिए निकल पड़े हैं। फिर जब हम कुछ करके दिखायेंगे तब तो ऐसे बहुतेरे लोग निकलेंगे।

संघकी बैठक

जनरल बोथाके पास शिष्टमण्डल ले जानेके लिए शनिवारको ४-३० बजे संघकी बैठक हुई थी। उसमें श्री ईसप मियाँ (कार्यवाहक अध्यक्ष), श्री अब्दुल गनी', श्री कुवाडिया, श्री नायडू, श्री उमरजी साले, श्री अलीभाई आकुजी, श्री पिल्ले, श्री मुहम्मद, इमाम अब्दुल कादिर आदि सज्जन उपस्थित थे। श्री हाजी हबीव' इस बैठकमें हाजिर होनेके लिए ही प्रिटोरियासे आये थे। कुछ सवालोके सुलझ जानके बाद श्रीहाजी हबीबके प्रस्ताव और श्री वाडियाके समर्थनसे जनरल बोथाके पास शिष्टमण्डल ले जाना तय हुआ। 'स्टार' में श्री गांधीने ऊपरका जो निवेदन प्रकाशित कराया है उसे मान्य करने के लिए सरकारसे निवेदन किया जाये और यदि सरकार उसे मान्य न करे और कानूनमें परिवर्तन न करे तो भारतीय कौम इस कानूनको कभी मंजूर नहीं करेगी तथा अपने सितम्बर माहके प्रस्तावपर अड़ी रहेगी, इन सब बातोंको भी जनरल बोथाके सामने पेश करनेका निर्णय हुआ। शिष्टमण्डलमें श्री ईसप मियाँ, श्री अब्दुल गनी, श्री हाजी हबीब, श्री मूनलाइट तथा श्री गांधीको भेजना तय हुआ। उसीके अनुसार श्री ईसप मियाँने जनरल बोथासे मुलाकातका दिन निश्चित करनेको लिखा है। उस पत्रके 'इं०ओ०' में प्रकाशित होने तक शिष्टमण्डल जनरल बोथासे मिल भी चुकेगा।

सरकार जेलमें न बन्द करे तो क्या कर सकती है?

ऐसा प्रश्न उठा है कि कहीं सरकार किसी भारतीयपर नये पंजीयनपत्रका मुकदमा न चलाकर सारा वर्ष बीतने तक रुकी रहे, और आखिर उसे परवाना न मिलनेके कारण व्यापार बन्द करना पड़े। किन्तु यह असम्भव है। क्योंकि बिना परवानेके व्यापारियोंकी संख्या यदि सैकड़ों हो तो वे किसी भी दिन कानूनको चपेटमें नहीं आ सकते। व्यापारियोंके

[१]ब्रिटिश भारतीय संवके अध्यक्ष, १९०३-७।

[२]ब्रिटिश भारतीय संघकी प्रिटोरिया समितिके मन्त्री।

[३]देखिए, “पत्र: प्रधानमन्त्रीके सचिवको", पृष्ठ १४-१५।

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