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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नौकरोंको कभी भी नुकसान नहीं हो सकता। यदि सरकार ऐसा करेगी तो कानूनका होनान-होना बराबर हो जायेगा। किन्तु मान लें कि सरकार केवल व्यापारियोंको ही तंग करना चाहती है। उस हालतमें, मैं पहले जवाब दे चुका है कि जेलका डर छोड़ देनेके बाद हमें किसी बात डरनेकी जरूरत नहीं रहती। सरकारने यदि परवाना न दिया तो उसका नुकसान होगा, क्योंकि व्यापारी बिना परवानेके भी व्यापार कर सकेगा। इस तरहके व्यापारमें उसे नया पंजीयन न करवाने जितनी ही जोखिम है। नया पंजीयन न करवानेसे आखिर जेल जाना पड़ेगा। वही बिना परवानेके व्यापार करनेसे भी होगा। अन्तर सिर्फ इतना ही है कि बगैर परवाना व्यापार करनेपर एक ही व्यक्तिको सजा होगी, अर्थात् दुकान खुली रह सकेगी और नौकर काम चला सकेंगे; जबकि नया पंजीयन न करवानेपर सभी लोगोंको पकड़ा जा सकता है।

बिना परवानके व्यापार करनेवालेका माल नीलाम किया जा सकेगा?

यह सवाल भी उठा है। नेटालके कानूनके अनुसार माल नीलाम किया जा सकता है। किन्तु ट्रान्सवालके कानुनके अनुसार तो यदि जुर्माना न दिया जाये तो जेल ही जाना होगा। जुर्माना तो किसीको देना ही नहीं है। यानी सरकार व्यापारिक परवाने के आधारपर यदि हमें कसना चाहे भी तो सभी दुकानदार और फेरीवाले बिना परवानेके व्यापार करने लग जायेंगे।

क्या दूकान बन्द की जा सकती है?

बिना परवानेके व्यापार करनेवालेकी दूकान सरकार बन्द कर सकती है या नहीं, यह सवाल भी उठाया गया है। जबरदस्ती दूकान बन्द करनेका कानून दक्षिण आफ्रिकामें किसी भी जगह नहीं है। इसलिए उसका डर रखनेकी जरूरत ही नहीं।

क्या विनियमों द्वारा परिवर्तन हो सकता है?

यह सवाल उठा है कि जनरल बोथा विनियम बनाकर हमें राहत दे सकते हैं या नहीं; और हम जितनी चाहते हैं उतनी राहत यदि मिल जाये तो भी क्या कानूनका विरोध करनेकी आवश्यकता रहती है? पहली बात तो यह जानना रहा कि कानून बनानेसे क्या हो सकता है? कानूनसे तो यही हो सकता है कि केवल अँगूठा लगानेसे या सारी अंगुलियाँ लगानेसे या हस्ताक्षर करनेसे काम चल सकता है या नहीं चल सकता। लेकिन बच्चोंका पंजीयन करवाना, पुलिसके द्वारा सताया जाना, पुलिसके पास शिनाख्त लिखवाना वगैरह कानूनकी जो खूनी धाराएँ हैं उनमें किसी धारासे परिवर्तन नहीं किया जा सकता। संक्षेपमें, कानून हमारे जो काला टीका लगाता है उसे धाराओं द्वारा नहीं पोंछा जा सकता। अतः हम जो सुधार चाहते हैं उन्हें कानूनमें परिवर्तन किये विना करना जनरल बोथाके लिए सम्भव नहीं है। कानूनमें परिवर्तन किया जानेकी आशा करना बिलकुल बेकार है। अधिकसे-अधिक यही हो सकता है कि कानून अभी 'गजट' में प्रकाशित न हो। ऐसा करने में दोनों पक्षोंको प्रतिष्ठा रह सकती है। सरकार यदि कानूनमें ऐसा परिवर्तन करे कि वह कानून हमें स्वीकार्य हो जाये तो उसमें उसकी फजीहत होगी।

स्वतन्त्र भारतीय कुत्तोंसे भी गये-बीते

यहाँ आजकल खेतीकी बड़ी प्रदर्शनी हो रही है। प्रदर्शनी-समितिने यह नियम बनाया है कि स्वतन्त्र एशियाई या स्थानीय लोग, जो गोरोंके नौकर न हों, प्रदर्शनी देखने नहीं जा