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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

एक अभियोग दूसरे भारतीयपर था। वह एक भारतीयके शपथपत्रको लेकर था। वही भारतीय दुबारा बयान देने में बदल गया था, इसलिए मजिस्ट्रेटने अपराधी भारतीयको छोड़कर झूठे गवाहको कैद किया। कहावत है कि दूसरेके लिए गड्ढा खोदनेवाला खुद ही उसमें गिरता है। इन महाशयके सम्बन्धमें यही बात चरितार्थ हुई जान पड़ती है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ८-६-१९०७

१९. अफगानिस्तानमें मुसलमानोंकी हालत

मुसलमानी प्रशासनके सम्बन्धमें श्री सैयद अली, बी. ए. का एक लेख हम पहले दे चुके हैं। उस लेखका दूसरा भाग मार्चके 'इंडियन रिव्यू' में आया है। उससे निम्न सारांश ले रहे हैं:

तुर्की और ईरानके सम्बन्धमें हम विचार कर चुके हैं। अब अफगानिस्तानके सम्बन्धमें विचार करें, जिसने अभी-अभी बहुत ही तरक्की की है। अमीर अब्दुर्रहमान खानके गद्दीपर बैठनेसे पहले अफगानिस्तानमें कोई राज्यव्यवस्था नहीं थी, यह कहें तो भी अनुचित न होगा, यद्यपि उस समय भी उनकी 'उलु' और 'मलिक' परिषदें थीं। कादी यानी गाँवोंके भिन्न-भिन्न भागोंके लोग अपनी ओरसे सारे गाँवकी परिषदमें सदस्य भेजते थे। वे लोग 'खेल' नामक परिषदके लिए सदस्य निर्वाचित करते थे और उनमें से 'उलु' का निर्वाचन होता था। परन्तु लोगोंके स्वभावके कारण उस समय राज्यकी बागडोर किसीके हाथमें टिक नहीं पाती थी। उस समय चोरी करनेवालेके हाथ काट दिये जाते थे। कोई गुलाम भाग जाये तो उसके पैर काट दिये जाते थे। सरदारोंके हाथमें अलग-अलग विभागोंकी हुकूमत थी। इन सरदारोंके ऊपर अमीर थे। किन्तु वे लोग अमीरकी सत्ता नहीं मानते थे। पठान स्वयं साहसी है इसलिए उन्हें इस प्रकारकी अन्धेरगर्दी अच्छी लगती थी। उस समय उपर्युक्त सजा ही योग्य थी। जनरल एलफिन्स्टनने एक पठानसे पूछा तो उसने जवाब में कहा: “हमें लड़ाईसे संतोष होता है। खतरेसे नहीं डरते, खून देखकर हमें चक्कर नहीं आते, परन्तु अपनी आजादी खोकर हम किसी बादशाहको स्वीकार करनेवाले नहीं हैं।"

जब अमीर अब्दुर्रहमान गद्दीपर बैठे, उन्होंने महान् परिवर्तन किये। उनका अपना राज्य रूस और इंग्लैंड दोनोंके बीच बिचौलिया-सा बना हुआ था। इसका उन्होंने पूरा लाभ उठाया। कभी वे रूसकी ओर झुकते थे तो कभी इंग्लैंडकी ओर। खुलकर झगड़ा उन्होंने किसीके साथ नहीं किया और अन्तमें इंग्लैंडके पक्षमें रहे। उनकी इस चालाकीसे यूरोपके राजनीतिज्ञ दंग रह गये। मरहूम अमीरने हमेशा लाभ उठाया। पर इसके बदले में लाभ दिया किसीको नहीं। राज्यके अन्दर भी अत्यन्त कुशलतापूर्वक उन्होंने सरदारोंके जोरको तोड़ दिया। राजस्व

[१]माउंट स्टुअर्ट एलफिन्स्टन (१७७९-१८५९) राजनीतिज्ञ और इतिहासकार, बम्बईके लेफ्टिनेंट गवर्नर, १८१९-२७।

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