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पत्र: 'स्टार' को

कानुनमें सुधार किये। भारतीय सरकारकी ओरसे जो बारह लाख और अन्तमें अठारह लाख रुपये वार्षिक अपने लिए मिलते थे, उसका उन्होंने उत्तम उपयोग किया। सेना बनाई, गोलाबारूद जुटाया और व्यापारकी वृद्धि की। बेकार कर हटा दिये, टकसाल स्थापित की। इस समयके गद्दीनशीन अमीरने अफगानिस्तानकी प्रतिष्ठा और भी बढ़ा दी है। उन्होंने दो सभाएँ स्थापित की है, जिनके नाम है―'दरबारशाही' और 'क्वाजानशाही'। इस प्रकारकी हुकूमतमें पठानोंके स्वभावमें भी परिवर्तन होने लगा है। यदि इसी प्रकार लम्बे असे तक चलता रहा तो शमशेर-बहादुर पठान पूर्वमें शक्तिशाली राज्य स्थापित कर सकेंगे। फिर भी यह स्वीकार करना होगा कि अभीतक अफगानिस्तानी प्रजा राजकीय प्रबन्धमें दखल नहीं देती है। अमीर हबीबुल्ला खान बादशाह हैं। बहादुर योद्धा है और मुल्ला है। उन्होंने भारतमें एक बार भी अपनी नमाज नहीं छोड़ी थी। १९०५ का सन्धिपत्र अमीर निभायेंगे या नहीं, कहा नहीं जा सकता। अमीर हबीबुल्लाकी गिनती अब बादशाहोंमें होती है। उन्हें २१ तोपोंकी सलामी दी जाती है और ईरानके शाहके पास जितनी सत्ता है उतनी ही अब अफगानिस्तानके अमीरके पास है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ८-६-१९०७

२०. पत्र': 'स्टार'को

पो० ऑ० बॉक्स ३५५३
[जोहानिसबर्ग]
जून ८, १९०७

सेवामें

सम्पादक
'स्टार'

[जोहानिसबर्ग]
महोदय,

मैंने आज 'गज़ट' में छपी यह सूचना देखी है कि एशियाई कानून-संशोधन अधिनियमपर सम्राट्की स्वीकृति मिल चुकी है और वह एक निश्चित दिन, जो नियत करना है, लागू हो जायेगा। मैं नहीं जानता कि इसका अर्थ क्या है किन्तु इससे कुछ अवकाश रह जाता है, और इसलिए मैं जनताके सम्मुख अधिनियमके व्यापारिक पक्षको रखना चाहता हूँ। इसके लिए मुझे कुछ अपनी कहानी बतानी पड़ेगी। मैं ट्रान्सवालमें पिछले १९ सालसे बसा हुआ हूँ और मुझे सुलेमान इस्माइल मियाँ एण्ड कं० नामकी पेढ़ीका प्रबन्धक साझेदारके रूपमें प्रतिनिधित्व करनेका सम्मान प्राप्त है। मेरी पेढ़ीका यूरोपीय थोक पेढ़ियोंसे बहुत बड़ा लेनदेन

[१]अनुमान है कि इसका मसविदा गांधीजीने बनाया था। यह इंडियन ओपिनियन में १५-६-१९०७ को प्रकाशित किया गया था।

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