है। उन्होंने, कहना जरूरी हो तो, इस पेढ़ीके साथ अपने कारोबारमें बहुत-बड़ा आर्थिक लाभ उठाया है। जेमिसनके धावेके' समय पेढ़ीने भारी हानि उठाई थी और फिर भी अपने लेनदारोंको रुपये में सोलह आने चुकाये थे। बोअर-युद्धमें भी उनकी ऐसी ही अग्नि-परीक्षा हुई थी; तब भी लेनदारोंको पूरा रुपया चुकाया गया था। और अब तीसरी बार उसके सामने पूरी बरबादी मुंह बाये खड़ी है। पहले दो उदाहरणोंमें कारण मानवीय शक्तिसे बाहरका था― कमसे-कम मेरी पेढ़ीके नियन्त्रणसे परे तो था ही। आज उसका कारण अपना उत्पन्न किया हुआ होगा। क्यों? सीधी-सादी बात यह है कि एशियाई कानुन संशोधन विधेयकको प्रत्येक भारतीय, जो उसे समझता है, विशुद्ध दासताका चिह्न मानता है। उससे ट्रान्सवाल, प्रत्येक भारतीयके लिए, जहाँतक मैं उनके विचार जानता है, कारावास बन जाता है। इसलिए भारतीयोंने फैसला किया है कि वे ऐसे कानूनके आगे नहीं झुकेंगे; बल्कि उसको अवज्ञाके जो भी परिणाम हों, उनको भोगेंगे। किसी कानूनकी अवज्ञा करना भारतीयोंकी प्रवृत्तिके विरुद्ध है। फिर भी इस कानूनके विरुद्ध उनकी भावना इतनी प्रबल है कि इसकी अवज्ञा करना अच्छाई और इसका पालन करना कायरता-भरी बुराई माना जाता है। एक भारतीय व्यापारीके रूप में जो स्थिति मेरी है वैसी स्थिति मेरे जैसे बहुत-से लोगोंकी है। क्या आप मानते हैं कि ऐसे सभी भारतीय यह पूरी तरह नहीं जानते कि कानूनको अवज्ञा करनेपर सांसारिक दृष्टिकोणसे उनकी कितनी हानि होती है? किन्तु हमने आपके देशवासियोंके पास रहकर यह सीखा है कि व्यक्तिगत स्वतन्त्रताको खोने और अपमान स्वीकार करनेसे ऐसी हानिको सहन करना अधिक अच्छा है। मैं अपने मिल्कियतनामेकी मंसूखी क्यों मंजूर करूँ और अपनी इज्जत खोकर परवाना-दफ्तरमें क्यों जाऊँ एवं ऐसा नया मिल्कियतनामा क्यों माँगूं जिसमें कई प्रतिबन्ध हों? इसके अतिरिक्त मुसलमान होने के कारण मैं इस बातपर अत्यधिक रोष प्रकट करता हूँ कि तकी साम्राज्यके मुस्लिम प्रजाजन अधिनियमके अपमानास्पद जुएसे मुक्त नहीं है जब कि उसी साम्राज्यके गैर-मुस्लिम प्रजाजन मुक्त हैं। मैं आपसे और जनतासे इन तथ्योंको अच्छी तरह तौलनेकी प्रार्थना करता हूँ।
यदि सरकारने यह अधिकार अपने हाथमें न रखा होता कि भारतीयोंके दृष्टिकोणसे जो स्थिति अनुचित है, उससे वह अब भी हट सकती है, तो मैंने आपको कष्ट न दिया होता। स्वेच्छासे फिर पंजीयन करानेका प्रस्ताव मान लिया जाये और यदि वह सफल न हो तो जो उसे कार्यान्वित न करें उनके अनिवार्य पंजीयनके लिए एक दिन नियत कर दिया जाये। यह सच है कि स्वेच्छासे पंजीयन कराने में भारतीय बच्चोंपर 'ठप्पा न लगेगा'; किन्तु मैं साफ तौरपर मंजूर करूँगा कि चाहे मुझे कितनी ही हानि क्यों न उठानी पड़े, मैं उस कानूनकी अवज्ञा करनेसे न रुकूँगा जिसका अर्थ यह होता है कि मैं अपने एक दिनके बच्चेका हुलिया लिखाऊँ और यह मौन स्वीकृति दे दूं कि वह दुधमुंहा बच्चा भविष्यका भयंकरतम अपराधी है। मैंने अपने कई यूरोपीय मित्रोंसे बातचीत की है। उन सबका यह खयाल है कि हमारी माँग बहुत ही उचित है। मैं आपसे और उनसे प्रार्थना करता हूँ कि आप ट्रान्सवालमें सम्मानपूर्ण जीवन बितानेके संघर्ष में हमारा समर्थन करें। ईसा जितने ईसाइयोंके नबी हैं उतने ही मुसलमानोंके भी हैं। उन्होंने एक जगह कहा है: “दूसरोंके साथ वैसा बरताव करो जैसा
[१]१८९५ में, देखिए खण्ड २, पृष्ठ ४१८।
- ↑ १.