२२. पत्र: छगनलाल गांधीको
जोहानिसबर्ग
जून १२, १९०७
प्रिय छगनलाल,
मांटेग्यू जायदादसे, उनके द्वारा किये गये विस्तारके कारण, हमें अतिरिक्त कुछ नहीं मिलनेवाला है।
मुझे हर्ष है कि कठिनाइयाँ आगेके कार्य और आगेकी प्रवृत्तियोंके लिए एड़का काम करती हैं। निःसन्देह उनको इसी अर्थमें समझना उचित है। ऐसे लोग पीछे हटना या निराश होना नहीं जानते। तुमने इस साधारण कहावतको उद्धृत किया है कि जो कर्त्तव्यकी प्रेरणाओंके अनुसार कार्य करते है उन्हें सफलता मिलनी ही चाहिए, और ऐसा ही होता है। परन्तु हमें सतर्क रहना चाहिए कि हम 'सफलता' शब्दका गलत अर्थ न लगायें। जहाँ बहुत-सी चीजें, जो धार्मिक नहीं होती, गलतीसे वैसी मान ली जाती है वहाँ बहुत-सी बातें, जिन्हें हम असफलताएँ समझते है, वास्तवम सफलताएं होती है। इसलिए, इस कहावतकी सत्यताको तो हम स्वीकार कर सकते हैं परन्तु हमें सदैव जो कार्य करना है उसपर दृष्टि रखनी चाहिए और परिणामका परवाह नहीं करनी चाहिए।
जहाँतक मेरा सम्बन्ध है, तुम 'इंडियन ओपिनियन' में इस अधिनियमके तमिल, हिन्दी और उर्दू अनुवाद छाप सकते हो और मेरे पास अलगसे पत्रक भेज सकते हो। इनको हम जितना ही बाँटेंगे उतना ही अच्छा होगा। यह अधिनियम अपनी निन्दनीयता आप ही बताता है। मैं देखता हूँ कि यहाँ भी लोगोंपर इसका ऐसा ही प्रभाव पड़ा है। यद्यपि तुमने मेरे पास चालू अंककी ३५० प्रतियाँ भेजी थीं, बहुत कम प्रतियाँ बच रही हैं। व्यासने प्रिटोरियाके लिए ६० प्रतियाँ मँगवाई थीं, और अन्दरूनी इलाकोंसे आज मेरे पास १५ प्रतियोंको मांग आई है।
गुजराती टाइपके बारेमें मुझे कोई उत्तर नहीं मिला है। गोकलदासने मुझे लिखा था कि वह इधर ध्यान देगा, परन्तु उसने मुझे हर तरहसे निराश ही किया है। वह काहिल, लापरवाह और अन्धविश्वासी हो गया है।
तुम्हारा शुभचिन्तक,
मो० क० गां०
गांधीजीके संक्षिप्त हस्ताक्षर-युक्त टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० ४७५४) से।
[१]गांधीजीके चचेरे भाई खुशालचन्द गांधीके पुत्र। ये इंडियन ओपिनियनके गुजराती विभाग तथा फीनिक्समें छापाखानेकी देख-रेख करते थे।
[२]एशियाई पंजीयन अधिनियम।
[३]गांधीजीकी बड़ी बहन रलियातबेनके पुत्र।