२३. शाही स्वीकृति
पंजीयन अधिनियमके लिए बहुत दिनोंसे टलती आई शाही स्वीकृति अब 'गज़ट' में प्रकाशित हो गई है। जनरल बोथाने यद्यपि लॉर्ड एलगिनको इस बातका आश्वासन दिया है कि वे ब्रिटिश भारतीयोंकी भावनाओंका खयाल रखेंगे तथापि उन्होंने ब्रिटिश भारतीयोंके एक शिष्टमण्डलसे मिलना अस्वीकार कर दिया है और कहा है कि उससे कोई फायदा नहीं हो सकता क्योंकि वह कानून पिछले सप्ताह 'गज़ट' में छप जानेवाला था। लेकिन हम देखते हैं कि यद्यपि कानून 'गजट' में छप गया है, तथापि उसके अमलको तिथि अनिश्चित कालके लिए बढ़ा दी गई है। वह या तो अभी तय होगी या फिर कभी नहीं होगी। ब्रिटिश भारतीय संघके कार्यवाहक अध्यक्ष श्री ईसप मियाँका पत्र', जो 'स्टार' में छपा है और जिसे हमने भी उद्धृत किया है, बहुत ही समयोचित है। श्री ईसप मियाँ, जो बहत पराने व्यापारी हैं और जिनके बहुत बड़े स्वार्थ दाँवपर हैं, जनतासे कहते है कि उन्होंने इस कानूनके अपमानको इतने मार्मिक रूपसे अनुभव किया है कि अगर इस कानूनके सामने न झुकनेके लिए उन्हें यही कीमत चुकानी पड़े, तो वे अपना सब-कुछ बलिदान करने के लिए तैयार हैं। इसके बाद उन्होंने बहुत ही तर्कसंगत प्रस्ताव रखे हैं कि कानूनको लागू करनेकी तिथि अभी निश्चित न की जाये और ब्रिटिश भारतीयोंको और अन्य एशियाइयोंको अपनी नेक-नीयतीका सबूत देनेके लिए इस बातकी छूट दी जाये कि वे स्वेच्छासे अपना पुन:पंजीयन करायें। अगर यह प्रयोग असफल साबित हो तो वह कानून उन लोगोंपर लागू किया जाये जिन्होंने स्वेच्छासे अपना पुनःपंजीयन न कराया हो। हमें आशा है कि ट्रान्सवाल सरकार इस स्पष्टतया उचित सुझावको मान लेगी। जनरल बोथाने ट्रान्सवालकी जनताकी तरफसे कई बार साम्राज्य सरकारके प्रति, ट्रान्सवालको दिये गये उदार विधानके लिए, गहरी कृतज्ञता व्यक्त की है, और अपनेको सम्पूर्ण साम्राज्यके लिए चिन्तित बताया है। अगर वे भारतको भी साम्राज्यका अंग मानते हैं तो इस बातकी आशा की जा सकती है कि इस आखिरी क्षणमें भी वे भारतीय समझौतेको स्वीकार करके ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंकी भावनाओंको दुखाना टाल देंगे।
उद्ध्घृत इंडियन ओपिनियन, १५-६-१९०७
[१]देखिए “ पत्र: 'स्टार' को", पृष्ठ ३५-३७।
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