२७. पूर्वका ज्ञान
जलालुद्दीन रूमी
'पूर्वका ज्ञान' नामक पुस्तकमाला इस समय विलायतमें छापी जा रही है। उसमें से दो पुस्तकें हमारे पास समालोचनार्थ आई हैं। पहलीका नाम 'बुद्ध-शिक्षा' और दूसरीका 'ईरानी सफी है। लेखकने ईरानी सफी'में प्रथम स्थान जलालुद्दीन रूमीको दिया है। उसमें सफी लोगोंका वर्णन, जलालुद्दीनका जीवन-वत्तान्त और उनकी कुछ कविताओंका अनुवाद दिया गया है। लेखकका कथन है कि सूफियोंको खुदाके बन्दे माना जा सकता है। उन लोगोंकी प्रवृत्ति मुख्यतः हृदय-शुद्धि और ईश्वर-भक्तिकी ओर है। कहा जाता है कि एक बार जलालुद्दीन रूमी एक मृत्यु संस्कार देखकर नाचने लगे। इसपर जब कुछ लोगोंने उनसे पूछा कि ऐसा क्यों, तो उत्तरमें वे महात्मा बोल उठे: "जब पिंजड़ेसे जीव बाहर आता है, अपने दुःखसे छुटकारा पाता है और अपने सिरजनहारसे मिलने जाता है तब मैं क्यों न खुश होऊँ?" मालूम होता है कि पुराने जमानेमें स्त्रियाँ भी ऐसी बातोंमें स्वतन्त्रतापूर्वक भाग लिया करती थीं। राबिया बीबी स्वयं सुफी थी। उनमें ईश्वरके प्रति प्रेम इतना गहरा था कि जब किसीने उनसे पूछा कि “आप इबलीसकी निन्दा करती हैं या नहीं," तब उन्होंने तुरन्त जवाब दिया, "मैं ईश्वरका भजन करने में इतनी लीन रहती हूँ कि मेरे पास दूसरेकी निन्दा करनेका समय ही नहीं रहता।" सूफी सम्प्रदायके उपदेशोंके अनुसार कोई भी धर्म जिसमें नीति हो बुरा नहीं होता। किसीके पूछनेपर जलालुद्दीनने उत्तरमें कहा था, "जितने जीव है, ईश्वरको याद करनेके उतने ही मार्ग है।" वे फिर कहते हैं “ईश्वरका नूर एक है, परन्तु उसकी किरणें अनेक हैं। हम जिस शाखासे चाहें, सच्चे हृदय और शुद्ध वृत्तिके साथ ईश्वरका भजन कर सकते हैं।"
सच्चा ज्ञान क्या है―इस सम्बन्धमें जलालुद्दीन कहते हैं कि "खूनका दाग पानीसे धोया जा सकता है, परन्तु अज्ञानका दाग तो केवल ईश्वरके प्रेमरूपी जलसे ही मिटाया जा सकता है।" इसके उपरान्त कवि कहता है कि "सच्चा ज्ञान तो केवल ईश्वरका ज्ञान है।" ईश्वर कहाँ है―इस प्रश्नके उत्तरमें कवि कहता है, "मैंने क्रूस तथा ईसाई लोगोंको देखा, परन्तु मैंने ईश्वरको क्रूसमें नहीं देखा। मैं मन्दिरोंमें गया, वहाँ भी उसे नहीं देखा; हिरात और कन्दहारमें भी वह नहीं मिला, और न मिला कन्दरामें। अन्तमें मैंने उसे अपने हृदयमें ढूंढ़ा तो मुझे वह वहाँ दिखाई दिया। अन्यत्र कहीं नहीं।" यह पुस्तक बहुत पठनीय है। यदि इससे ऊपरके जैसे बहुत-से वाक्य उद्धृत किये जायें, तो भी वे खत्म होनेवाले नहीं हैं। हम इस पुस्तकको मँगवानेकी सबसे सिफारिश करते हैं। इसे पढ़कर हिन्दू तथा मुसलमान बहुत लाभ उठा सकते हैं। इसका मूल्य विलायतमें २ शिलिंग है।
[१]द वे ऑफ द बुद्धा।
[२]पर्शियन मिस्टिक्स।
[३](१२०७-७३), ईरानके सूफी कवि।