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नेटाल भारतीय कांग्रेस

चोर, चुगल, ठग, धूर्त बनकर रहने में धिक्कार है। मर्दो, हकोंकी प्राप्तिके हेतु जेलके दुःख सहो। जिनका जन्म हुआ है उन्हें मरना ही है, इसलिए हिम्मत मत हारो। रहम करनेवाला समर्थ मालिक तुम्हारे साथ है, बलिदानके लिए तुरन्त तैयार हो जाओ। हक प्राप्त करने के लिए यरोपमें औरतें भी बहत लड रही हैं। जापानका उदाहरण ताजा है। वह हमें अपनी भूली हुई शक्तिकी याद दिला रहा है और कह रहा है कि हर जगह हम अपने हक माँगें। उसमें लज्जित होनेकी कोई बात नहीं है।

अकबर और सिकन्दरका पूरा इतिहास देखो। विक्रम, भोज और राणा प्रताप बहादुर थे। नेपोलियन शूर था। इनका सारे संसारमें नाम है। ऐसे ही अफगानिस्तानके अमीर और हमारे प्रधान मन्त्री जनरल बोथा है। बहादुरोंकी शान यही है, और सब बेकार है।

जब रक्षक ही भक्षक बन जाये तब कहाँ जाकर फरियाद करें। महाराज एडवर्ड, अब हम और कबतक सहन करें?

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २२-६-१९०७

३१. नेटाल भारतीय कांग्रेस

नेटाल भारतीय काँग्रेसने चन्दा इकट्ठा करना शुरू किया था, लेकिन देखते हैं कि काम अब ढीला पड़ गया है। काँग्रेस अभी कर्जदार है, यह मन्त्रियोंकी सूचनासे ज्ञात हो सकता है। काँग्रेसकी उगाहीमें जो ढील होती है उसे हम नुकसानदेह मानते हैं। यह समय ऐसा नहीं जब ढोल सहन हो। कांग्रेसको परवानक सम्बन्धम बड़ी लड़ाई लड़नी है; गिरमिटिया कानून बारेमें झंडा उठाना है; और समय आनेपर ट्रान्सवालके भारतीयोंकी मदद करनी है। ये तीनों काम बड़े हैं। व्यापारिक परवानोंके बिना व्यापारी परेशान होंगे, इसलिए स्वार्थकी दृष्टिसे भी काँग्रेसको अपने खजानेकी हालत अच्छी रखनी चाहिए। काँग्रेसने १८९४ से अपने लिए जो लक्ष्य निर्धारित किये है उनमें गिरमिटियोंके कष्टोंमें हाथ बँटाना मुख्य है। अत: थॉनविलमें जो घटना हुई है उसके बाद काँग्रेस चुप नहीं बैठ सकती। मुंह खोलनेके लिए भी इस देश में महमदी' लगती है―खर्च लगता है। ट्रान्सवालके भारतीयोंको मददके लिए कांग्रेस बँधी हई है; क्योंकि काँग्रेसने उन्हें लड़ाईमें लगे रहनेकी सलाह दी है। इसके अतिरिक्त ट्रान्सवालको लड़ाईमें हर भारतीयका स्वार्थ समाया हुआ है। इसलिए हम आशा करते हैं कि उपर्युक्त तीनों बातोंका खयाल करके काँग्रेस कार्यकर्ता कमर कसेंगे और पैसे रूपी शस्त्र तुरन्त ही जमा करेंगे; यह काम कलपर टाला नहीं जा सकता।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २२-६-१९०७

[१] देखिए खण्ड १, पृष्ठ १३०-५।

[२] देखिए " गिरमिटिया भारतीय मजदूर", पृष्ठ ४१।

[३] चांदीका एक पुराना सिका।

७-४
  1. १.
  2. २.
  3. ३.