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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

मुझसे जो प्रश्न पूछा गया है उसके सम्बन्धमें मेरी यह राय है कि नये कानूनमें या दूसरे किसी कानूनमें कानूनका विरोध करनेवालेको जबरदस्ती निर्वासित करनेका अधिकार नहीं है। मेरी जानकारीमें ऐसा एक भी कानून नहीं है जिसके अन्तर्गत जबरदस्ती निर्वासित करनेका किसीको अधिकार हो। अनुमतिपत्र-कानूनकी सातवीं और आठवीं धारामें बताई गई सजाके सिवा और कोई सजा नहीं दी जा सकती। (सातवींआठवीं उपधाराओंमें जो देश न छोड़े उसे जेलमें भेजनेका अधिकार है)।

अतः यही समझना चाहिए कि निर्वासनकी बात दरकिनार हो गई है।

अफवाह

अफवाह है कि नये कानूनके १ जुलाईसे लागू होनेकी सूचना प्रकाशित होनेवाली है। यानी जिन लोगोंको गुलामीकी छाप लगवानी हो, उन्हें उस तारीखसे लगा दी जायेगी। अब रंग जमेगा।

भारतीय ‘बाजार’

'गजट' में सूचना आई है कि भारतीय 'बाजार' वास्तवमें भंगी मुहल्ले अब नगरपरिषदके सुपुर्द किये गये हैं। यह सूचना अभी तो बिलकुल बेकार है, क्योंकि उन 'बाजारों में भारतीयोंको कोई जबरदस्ती नहीं भेज सकता। यह सब नये कानूनके पीछे घूम रहा है। नया कानून भारतीय कौम रद कर दे रद समझ ले तो बस्ती सम्बन्धी कानूनों तथा वैसे ही दूसरे कानूनोंको तुरन्त निद्रा-रोग हो जायेगा।

फेरीवालोंपर आक्रमण

व्यापारमण्डलने सरकारको लिखा था कि भारतीयोंको आनेसे रोका जाये। इसके उत्तरमें उपनिवेश-सचिवने लिखा है कि थोड़े ही दिनों में जब प्रवास-कानून प्रकाशित हो जायेगा तब भारतीय व्यापार बहुत-कुछ रुक जायेगा; क्योंकि, फेरीवालोंके लिए सख्त कानून बनाये गये है। अतः जो नये कानूनकी चोर-छाप लगवाना चाहते हों वे इससे समझ लें कि उनका क्या हाल होगा। अगले सप्ताह यदि प्रवास-विधेयक प्रकाशित हुआ तो उसका अनुवाद देनेका इरादा है। चारों ओर अच्छी तरह आग लग रही है। मैं इन सबको शुभ लक्षण मानता हूँ। रोगके गहरे होनेपर सच्ची बीमारीकी पहचान की जा सकती है।

कर्टिस[१] और नया कानून

श्री कर्टिसने नये कानूनके सम्बन्धमें जो प्रयत्न किये उनके लिए पॉचेफ्स्ट्रम व्यापारमण्डलने आभार माना है। उसके उत्तरमें श्री कटिसने निम्नानुसार लिखा है:

आपके मण्डलके ११ मईके पत्रके लिए मैं कृतज्ञ हूँ। इस प्रश्नका महत्त्व किसीको न दिखाई दे, यह मेरी समझमें नहीं आ सकता। एशियाइयोंसे मेरा निजी कोई झगड़ा नहीं है। किन्तु मुझे विश्वास है कि गोरे और एशियाइयोंका घुलना-मिलना दोनोंके लिए खराब है। जिस देशमें अलग-अलग रहना दोनोंके लिए लाभदायक हो वहाँ दोनोंको अलगअलग रहना चाहिए। एशियाई प्रश्न व्यापारका प्रश्न है, यह केवल मोटे तौरसे सोचनेपर ही कहा जायेगा। वास्तवमें यह प्रश्न बहुत ही बड़ा है और वैसा ही समझा जाना चाहिए।

[२]सन् १९०३ का अध्यादेश ५।

[३]लॉयनेल कर्टिस, सहायक उपनवेश-सचिव।

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