पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं आशा करता हूँ कि कोई यह न समझेगा कि श्री चचिलने[१] घोषणा की है इसलिए अधिनियम पूर्ण हो चका है। जबतक यह कानून यहाँ लागू नहीं हआ है तबतक विलायतमें दबाव डालनेसे यदि कुछ परिवर्तन हो जाये तो कोई आश्चर्यकी बात नहीं। और यह भी हो सकता है कि परिवर्तनके कारण कानून निकम्मा बन जाये। इस कानूनका उद्देश्य यह है कि हर साधिकार भारतीयको पंजीकृत किया जाये, उसकी अंगुलियोंकी छाप ली जाये, जिससे पंजीयनपत्रका हस्तान्तरण न किया जा सके।

लेकिन हमें यह न मानना चाहिए कि कानूनके प्रकाशित हो जानेसे काम हो गया। वह कानून ठीक तरहसे अमल में आता है या नहीं, इस बातपर बहुत-कुछ निर्भर है। मैंने जो देखा है उसके अनुसार मैं कह सकता हूँ कि सरकारको जो-कुछ करना चाहिए उसमें उसने कुछ भी उठा नहीं रखा है। आशा है कि इस कानूनको प्रभावशाली बनाने में समाचारपत्र और जनता मदद करेगी। यह कानून ठीक तरहसे अमलमें आ सके, इसलिए समाचारपत्रोंका कर्तव्य है कि वे अधिकारियोंकी हिम्मत बढ़ायें। अधिकारियोंका काम आसान नहीं है। उनपर जनता यदि भरोसा न रखे तो उनका काम बिलकुल बिगड़ जानेकी सम्भावना है। मैं आशा करता हूँ कि अधिकारियोंपर आरोप लगाये जायें तो उनके बारेमें जनता बहुत ही सावधानीसे काम लेगी। उनका काम बहुत कठिन है। उनसे बहुत द्वेष किया जायेगा। आरोप लगाये जानेपर यदि वे खुले आम बचाव कर सकते तो कोई बात न थी। किन्तु यह नहीं हो सकता। उनकी कठिनाई उनके वरिष्ठ अधिकारी ही समझ सकते हैं। मुझे यह कहना चाहिए कि उनपर आरोप लगाये जायें तो उनकी ओर जनता बिलकुल ध्यान ही न दे; क्योंकि उपनिवेश-सचिव उनकी छानबीन कर सकते हैं। जबतक उपनिवेश-सचिव अधिकारियोंपर भरोसा रखते हैं तबतक जनताको भी रखना चाहिए। मैं बड़ा अधिकारी था और छोटे अधिकारियोंपर आरोप लगाये जाते थे तो मैं उनकी जाँच करता था। अधिकारी बहुत ही उद्यमी और अपना फर्ज अदा करनेवाले हैं। उनपर जो आरोप लगाये जाते हैं उन्हें जनताको महत्त्व नहीं देना चाहिए। श्री कर्टिसका यह तमाशा अजीब है। एक ओर तो इन महाशयने कानूनको पास करवानेमें बड़ी मेहनत की, और अब कानूनको अमलमें लानेवाले अधिकारियोंपर कुछ न गुजरे, इसलिए जनताको पहलेसे चेतावनी दे रहे हैं, मानो अधिकारी चाहे जितना जुल्म करें, उसकी जनताको परवाह नहीं करनी चाहिए। सौभाग्यसे भारतीय समाजको अधिकारियोंकी कतई जरूरत नहीं होगी। किन्तु यदि होती, तो श्री कटिसके पत्रका यह अर्थ हुआ कि जैसे जैक्सनपर मुकदमा चलाया गया था, वैसे ही यदि कोई दूसरा अधिकारी करे तो उसपर मुकदमा चलानेके लिए जनता कुछ न करे। क्योंकि, उपनिवेश-सचिवको उस सम्बन्धमें सारी जानकारी मिलती रहेगी। श्री कर्टिस साहब भूल गये हैं कि सर आर्थर लॉलीके पास जब कई बार शिकायत गई तब कहीं उन्हें अपने अधिकारीकी स्थितिका ज्ञान हुआ था।

[२](१८७४- ) ब्रिटिश राजनीतिज्ञ, सैनिक तथा लेखक। उपनिवेश उपमन्त्री, १९०५-८। इंग्लैंडके प्रधानमन्त्री: १९४०-४५ तथा १९५१-५५।

[३]टान्सवालके लेफ्टिनेंट गवर्नर १९०२-५। १९०५ में मद्रासके गवर्नर नियुक्त किये गये थे। देखिए खण्ड ४, पृष्ठ २०१ और खण्ड ५, पृष्ठ १६०।

  1. १.
  2. १.
  3. २.