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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/८७

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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

चीनियोंकी लड़ाई

चीनी संघके श्री किममिंगने 'स्टार' को निम्नानुसार पत्र लिखा है:

चीनियोंकी भावनाओंकी जरा भी परवाह किये विना यह शर्म-भरा कानून अमलमें लाया जानेवाला है, इससे चीनी समाजको आश्चर्य हुआ है।

हम कौन है? चीनियोंने जो प्रस्ताव पहले पास किया था उसीको फिर यहाँ पेश करता हूँ कि हम स्वेच्छया पंजीयन करवानेको तैयार है, किन्तु गोरे लोग हमें गुलाम बना लें, यह कभी नहीं हो सकता। हम यह व्यवहार सहन नहीं करेंगे। इस शर्मनाक कानूनके सामने हम नहीं झुकेंगे। इससे भले वे हमारा कुछ भी करें, चूंकि हम सच्चे है इसलिए अन्ततक लड़ते रहेंगे। हम कोई अनुचित बात नहीं, बल्कि शुद्ध न्याय मांग रहे हैं।

अंग्रेजोंको हम अपने देशमें भले आदमियों के रूपमें जानते हैं। यहाँ यदि वे हमपर जुल्म करेंगे तो हम उन्हें सम्मान देना बन्द कर देंगे, जिससे चीनमें भी उन सबकी प्रतिष्ठा चली जायेगी।

चमिडेलबर्ग-बस्ती

मिडेलबर्ग नगर-परिषदने सूचित किया है कि मिडेलवर्गके भारतीय न बस्तीसे निकलते हैं, न जिन बाड़ोंका इस्तेमाल करते हैं उनका किराया देते हैं; और बिना हक उनका उपयोग करते रहते हैं। इसलिए नगर-परिषदने उनपर मुकदमा चलानेका निर्णय किया है। मिडेलबर्गकी बस्तीमें रहनेवाले भारतीयोंको इस विषयमें सोचना चाहिए। यदि किराया न देनेकी बात सच हो तो यह ठीक नहीं कहा जा सकता। दोष हमारी ओर तो जरा भी नहीं होना चाहिए।

समितिकी भूल

समितिका तार आज (बुधवारको) मिला। उसमें लिखा है कि कानूनके विरोधमें जेल जानेके निर्णयको समिति नापसन्द करती है। मुझे आशा है कि इससे कोई भारतीय परेशान नहीं होगा। समितिको पसन्दगीका हम निर्वाह कर पाते तो अच्छा होता। किन्तु समितिने नापसन्दगी जाहिर की है, उसे भी समझा जा सकता है। समितिके प्रमुख सदस्य भारतके पूराने प्रसिद्ध अधिकारी हैं और आगे भी अधिकारी बन सकते हैं। वे हमें कानूनका विरोध करनेकी सलाह दें, इसी में आश्चर्य होगा। वे हमें कानून स्वीकार करनेको कहें, इसमें कुछ आश्चर्य नहीं है। समितिकी सलाहको हमें वकीलकी सलाहके समान समझना चाहिए। वह हमें कानून भंग करनेको नहीं कह सकती। जिनपर कष्ट पड़ा हो वे ही यह इलाज कर सकते हैं तथा उसकी जिम्मेदारी उठा सकते हैं। इस तारकी खबर देनेके लिए संघकी बैठक की गई थी, जिसमें संघने नीचे लिखे अनुसार तार भेजनेका निर्णय किया है।

कानूनके सामने झुकने में और किसी बातका विचार न करें तब भी इतना तो सोचना ही होगा कि भारतीय समाजने जो खुदाकी शपथ ली है, वह टूटती है और उसे तोड़नेको तो समितिकी ओरसे सलाह नहीं मिलनी चाहिए। आशा है, भारतीयोंके प्रति समितिकी सहानुभूति बनी रहेगी।

यह तार ठीक गया है। किन्तु यदि इससे समिति भंग भी हो जाये तब भी यह तो हो ही नहीं सकता कि भारतीय समाजने जो काम शुरू किया है वह बन्द हो। भारतीय