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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समाजका खुदा―ईश्वर―सच्चा मददगार है। उसे बीच में रखकर शपथ ली गई है और उसीके भरोसे हम पार होंगे।

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अपनी पिछली चिट्ठी में मैं लिख चुका हूँ कि बचे हुए चीनी १९०७ में जायेंगे। इसकी ओर एक पाठकने मेरा ध्यान आकर्षित किया है। मैं उसका आभार मानते हुए अपनी भूल सुधारता हूँ कि १९०७ की जगह १९०८ होना चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २९-६-१९०७

३८. भेंट: 'रैड डेली मेल' को[१]

[जून २८, १९०७]

...उपर्युक्त घोषणाकी आगाहीपर ट्रान्सवालके भारतीय समाजके रुख और प्रतिक्रियाके सम्बन्धमें 'मेल'के एक प्रतिनिधिने भारतीय समाजके अग्रणी तथा पथप्रदर्शक श्री मो० क० गांधीसे मुलाकात की थी।

गांधीजी:] यह कहना कठिन है कि इस कानूनके लागू होनेका अन्तिम परिणाम क्या होगा; परन्तु जहाँतक मेरा और मेरे सहयोगियोंका सम्बन्ध है, हम प्रस्तावित पंजीयनको न माननेके लिए दृढ़-प्रतिज्ञ हैं; बल्कि उसके अन्तर्गत मिलनेवाले सबसे बड़े दण्डको भोगनेके लिए तैयार है।

अपने इस भावमें हम किन्हीं राजद्रोही इरादोंसे या विरोधकी साधारण भावनासे प्रेरित नहीं हैं। इसके पीछे केवल आत्मसम्मानका विचार है।

दूसरे शब्दोंमें, उन्होंने एक बड़े सत्याग्रह संग्रामकी भविष्यवाणी की, जिसके बारे में उन्होंने अनमान किया था कि उसमें कमसे-कम ट्रान्सवालके आधे ब्रिटिश भारतीय भाग लेंगे।

निःसन्देह परिणामकी भविष्यवाणी करना अत्यन्त कठिन है, क्योंकि वर्षों अप्रयोगके कारण विधानके प्रति विरोध प्रकट करनेका ऐसा ढंग मेरे देशवासियोंके लिए नया है। परन्तु साथ ही ट्रान्सवालके समस्त भागोंसे मझे जो पत्र मिले हैं, और 'इंडियन ओपिनियन' के सम्पादक को जो पत्र भेजे गये हैं, उनसे मेरा यह खयाल होता है कि विधानको न माननेकी नीतिपर ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंमें से पूरे ५० प्रतिशत दृढ़ रहेंगे। मैंने अभीतक एक भी ऐसे भारतीयका नाम नहीं सुना जिसने इस कानूनका समर्थन किया हो। बहुतसे अनुभव करते हैं कि जेलकी कठिनाइयोंको सहन करनेसे अच्छा यह होगा कि वे देशको छोड़ दें; परन्तु मैं ऐसे एक भी आदमीको नहीं जानता जिसने कभी कहा हो कि वह इस कानूनके अन्तर्गत नया पंजीयन प्रमाणपत्र लेगा।

श्री गांधीने कहा, भारतीय बहुत नाराज हैं और उन्होंने हिसाब लगाया कि नये कानूनके अनुसार पंजीयन करानेसे कमसे-कम ६,००० इनकार करेंगे।

[२]ता. २८-६-१९०७ के गवर्नमेंट गज़टमें एशियाई कानून-संशोधन अधिनियम तथा तत्सम्बन्धी विनियमोंके प्रकाशन और यह ऐलान हो जानेपर कि उक्त अधिनियम १ जुलाई १९०७ से अमलमें लाया जायेगा, यह मुलाकात हुई थी। रैड डेली मेलमें इन शीर्षकों के साथ रिपोर्ट छपी थी: “जेल जाना अनिवार्य: अध्यादेशपर भारतीय: ८००० अनाक्रामक प्रतिरोधी: सोमवारसे कानून लागू: प्रिटोरियासे प्रारम्भ"।

  1. १.