३९. लॉर्ड ऐम्टहिल
लॉर्ड ऐम्टहिलने दक्षिण आफ्रिकामें एक निराश्रित पक्षका साहस और उद्यमके साथ समर्थन करके दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीयोंकी चिर-कृतज्ञता अर्जित की है। एशियाई पंजीयन अधिनियमपर विवादका आरम्भ करते हए लॉर्ड महोदयने लॉर्डसभामें जो भाषण दिया, उससे प्रकट होता है कि उनके लिए सारी दुनियाकी ब्रिटिश प्रजा समान है और ब्रिटिश राजनयिकोंका वचन, यद्यपि वह उन जातियोंको दिया गया है, जो उसके भंग होनेपर किसी प्रकारकी नाराजगी व्यक्त करने में असमर्थ है, किसी प्रतिज्ञापत्रसे कुछ कम नहीं है। हमें आशा है लॉर्ड महोदयने जिस प्रकार प्रारम्भ किया है उसी प्रकार वे आगे बढ़ते रहेंगे और तबतक शान्त नहीं होंगे जबतक इस प्रथम कोटिके प्रश्नको उचित स्थान तक नहीं पहुंचा देंगे।
वह इतने महत्त्वका प्रश्न है कि सर जॉर्ज फेरारको भी मानना पड़ा है कि यह ट्रान्सवालमें चीनियोंकी गिरमिट खतम करने या साम्राज्य-सरकारसे ट्रान्सवालमें कृषिके विकासके लिए कर्ज प्राप्त करनेसे बहुत अधिक महत्त्व रखता है। भारतीय समाचारपत्रोंकी जो कतरनें हालमें हमारे पास आई हैं उनसे पता चलता है कि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोसे घटनाओंने भारतीय जनताके मनपर गहरा असर डाला है। इसलिए यह खेदकी बात है कि ऐसे महत्त्वके प्रश्नपर लॉर्ड एलगिनने, जो इसके सही निबटारेके लिए जिम्मेवार हैं, इसपर ठीक तरह गौर नहीं किया। हमें यह देखकर दुःख होता है कि लॉर्ड महोदयने, शायद अनजानेमें, ट्रान्सवाल-सरकारके भुलावे में आकर प्रवासके सवालको ट्रान्सवालके अधिवासी भारतीयोंके प्रति होनेवाले बरतावके सवालके साथ उलझा दिया है। ब्रिटिश भारतीय संघने हमारे खयालसे निर्णायक रूपमें सिद्ध कर दिया है कि एशियाई पंजीयन अधिनियम ब्रिटिश भारतीयोंके प्रवासको नियमित नहीं करता और अगर शान्ति-रक्षा अध्यादेशको वापस ले लिया गया, जैसा कि लॉर्ड सेल्बोर्नने कहा है कि इसे वापस ले लेना चाहिए, तो एक नया कानून बनाना पड़ेगा और, दरअसल, उसकी योजना बन भी गई है। पंजीयन-अधिनियम प्रवासके मामलेको किसी प्रकार हल तो नहीं करता, लेकिन ट्रान्सवालमें रहनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंको अपमानित जरूर करता है और अपने परिणामरूपमें ब्रिटिश संविधानके चिरपोषित सिद्धान्तको―अर्थात् इस सिद्धान्तको कि प्रत्येक मनुष्यको तबतक निर्दोष समझना चाहिए जबतक वह अपराधी नहीं साबित हो जाता; और एक निर्दोष व्यक्तिको दण्ड मिले इसकी बजाय यह अच्छा है कि अपराधी बिना दण्ड पाये बच निकलें―बदल देता है। यह कानून प्रत्येक भारतीय को अपराधी मान लेता है और यह साबित करनेका भार उसीपर डालता है कि वह अपराधी नहीं है, अर्थात् वह ट्रान्सवालमें कानूनी तरीकेसे दाखिल हुआ है। फिर, यह ट्रान्सवालके तमाम एशियाई समुदायको बुरी तरह दण्डित करता है, ताकि कुछ धोखेबाज एशियाई चोरीसे ट्रान्सवालमें न चले जायें; और तब भी
[१] दक्षिण आफ्रिकामें उच्चायुक्त और १९०५ से १९१० तक ट्रान्सवाल तथा आरेंज रिवर उपनिवेशके गवर्नर।
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