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अंगद-वार्ता

कानूनका यह उद्देश्य पूरा नहीं होता, क्योंकि पंजीयन उन एशियाइयोंको रोक नहीं सकता जो धोखेबाज है और इस देशमें चोरीसे दाखिल होना चाहते हैं और यहाँ तबतक रहना चाहते हैं जबतक कि वे पकड़ न लिये जायें। यह अधिनियम वैसा ही है जैसे ईमानदार लोगोंको इसलिए जेलमें बन्द कर दिया जाये कि चोर चोरी न कर सकें।

इसके अलावा, लॉर्ड एलगिनने इस कथन-मात्रको सही मान लिया है कि अनुमतिपत्रोंका नाजायज व्यापार हआ है। ब्रिटिश भारतीय संबने कई बार इसका सबूत मांगा है, लेकिन नहीं मिल सका। श्री चैमनेका प्रतिवेदन[१], जैसा कि हमने बताया है, एशियाइयोंके कथनका पूरा समर्थन करता है। इस प्रकार यह कानून एशियाई समुदायके साथ दोहरा अन्याय करता है। एक तो, यह एशियाई समुदायके विरुद्ध झूठे इलजामपर आधारित है और दूसरे, प्रभाव में यह एक दण्ड देनेवाला विधान है। इसलिए अगर ट्रान्सवालके चीनो और भारतीय निवासियोंने यह तय कर लिया हो कि अनिवार्य पंजीयन और उसके साथ लगी हुई अन्य सब बातोंके सामने नहीं झुकेंगे तो इसमें आश्चर्यको कोई बात नहीं। अगर एशियाई दरअसल इस कानूनको बुरा समझते हैं, तो चाहे इसमें जितना माली नुकसान सहना पड़े, इसे न मानना ही उनके लिए सीधा रास्ता है और हमें विश्वास है कि अपने इस संघर्ष में उन्हें लॉर्ड ऐम्टहिल और उनके साथियोंको सहानुभूति मिलेगी। इस संघर्षसे उन्हें कोई ख्याति या लाभ नहीं मिलनेवाला है, परन्तु दीन और असहाय लोगोंको सच्ची दुआएँ उन्हें मिलेंगी।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २९-६-१९०७

४०. अंगद-वार्ता

कहा जाता है कि रामचन्द्रजीने रावणसे लड़ाई शुरू की, उसके पहले समझौतेकी वार्ताके लिए अंगदको रावणके पास भेजा था। उस जमानेके रिवाजके अनुसार सच्ची बहादुरी इसमें होती थी कि यद्ध करने के पहले शत्रको उसकी गलती सुधारनेका पूरा मौका दिया शत्रुके सामने झुकते भी थे। झुकनमें कोई हलकापन नहीं है। किन्तु इतना करनेपर भी यदि शत्रु नहीं मानता था तो पूरी ताकत दिखाते थे और संकल्पित कार्य करते थे। पुराने जमानेमें सारी दुनियाके लोग ऐसा ही करते थे। आज भी ऐसा करना अच्छा माना जाता है।

रामने रावणके साथ जैसा व्यवहार किया था वैसा ही व्यवहार भारतीय समाजने सवाल सरकारके साथ किया है। जितनी नम्रता बरती जा सकती थी उतना बरती गई है। फिर भी जबतक कानन सारे भारतीय समाजपर लागू नहीं हो जाता तबतक ट्रान्सवाल सरकार सुखी नहीं होगी।

रामने अंगदको समझौता-वार्ताके लिए भेजा था। अंगदके बहुत समझानेपर भी रावण नहीं माना। और चूँकि अन्याय उसका था इसलिए अन्तमें उसे हारना पड़ा। ब्रिटिश भारतीय संघकी मारफत सरकारसे अनुनय-विनय करनेपर श्री स्मट्सकी ओरसे भारतीय

[२] देखिए, खण्ड ६, पृष्ठ ४२८-२९।

  1. १.