समाजको अब अन्तिम उत्तर मिला है कि सरकारको भारतीय समाजका स्वेच्छया पंजीयनका सुझाव मंजूर नहीं है। यानी अब यही जानना शेष रहा कि कानूनको लागू करनेकी तार कब प्रकाशित होती है। इसीके साथ हमें यह भी मान लेना होगा कि सरकार अपन मनके कानून बनाती है। कानून बनाने में अँगुलियोंकी निशानी लेनेके बारे में कुछ परिवर्तन हो सकते हैं। लेकिन इससे भारतीय समाजका कुछ काम नहीं होगा। इसलिए भारतीय समाजको अब लड़ाईकी ही तैयारी करनी रही। लड़ाईके लिए भारतीय समाजको और कुछ नहीं, केवल जेलके प्रस्तावपर अटल रहनेकी दृढ़ता चाहिए। इसके सिवा और किसी बातको जरूरत नहीं। हमारे नाम जो पत्र आये हैं उनसे प्रकट होता है कि भारतीय समाज उसके लिए बिलकुल तैयार बैठा है। ट्रान्सवाल सरकारने जो हमारी बात नहीं मानी, इसके लिए तब तो नाराज होने के बजाय खुश होना चाहिए। सच-झूठकी परीक्षा अब हो जायेगी।
इंडियन ओपिनियन, २९-९-१९०७
४१. दक्षिण आफ्रिकामें अकाल
दक्षिण आफ्रिकामें वर्तमान समय बहुत ही खराव बीत रहा है। हर जगह तंगी दिखाई देती है। गोरे और काले सबकी हालत खराब हो गई है। उसमें जमीनवालों और व्यापारियोंकी ज्यादा मुश्किल है। इस समय दुरदर्शी व्यक्तिको सोचना चाहिए कि क्या किया जाये। व्यापार और भी कमजोर होगा। जमीनका मूल्य और भी घटता जायेगा। यह कहाँतक निभेगा? इस मुल्कका यह संकट वर्षाकी कमीके कारण नहीं, न फसल बिगड़नेसे है, बल्कि इसलिए है कि जहाँसे पैसा आता था वह जगह बेकार हो गई है। इससे हम देख सकते हैं कि खेतीमें नुकसान नहीं है। इसलिए हम प्रत्येक भारतीयको सलाह देते हैं कि इस अवसरका लाभ उठाकर जिससे जितना बन सके उतना वह खेतीपर ध्यान दे। व्यापारी और दूसरे सब भारतीय खेती कर सकते हैं। उसमें बहुत पैसेको आवश्यकता नहीं रहती, न उसमें परवाने वगैरहका सवाल उठता है। हमारी निश्चित राय है कि यदि भारतीय समाज खेतीकी ओर अधिक ध्यान देगा तो उसे लाभ होगा। इतना ही नहीं, खेतीका धन्धा इस मुल्कमें भारतीयके विरुद्ध जो आपत्ति है उसे दूर करने में भी मदद कर सकता है। यह मुल्क नया है। इसलिए यहाँ बहुत प्रकारकी फसलें पैदा की जा सकती हैं। और यदि वे यहाँ न खपें तो उन्हें बाहर भेजा जा सकता है। ट्रान्सवालमें डच लोग खेतीके द्वारा देशको सम्पन्न बनानेका प्रयत्न कर रहे हैं। वही नेटालमें भी हो रहा है। इससे प्रत्येक भारतीयको चेतना चाहिए कि वह जमीन जोतनेको ओर ध्यान दे।
इंडियन ओपिनियन, २९-६-१९०७