४४. भारत और ट्रान्सवाल
इस समय भारतको नजर ट्रान्सवालपर है। मद्रासमें दस हजार भारतीयोंकी सभाने प्रस्ताव किया है कि भारतीयोंको दक्षिण आफ्रिकामें कष्ट सहना पड़ता है, इसलिए उपनिवेशोंके गोरोंको भारतमें कोई नौकरी अथवा अन्य अवसर नहीं मिलना चाहिए। लाहौरका 'ट्रिब्यून' लिखता है कि यदि भारतीय समाज अन्ततक अपना उत्साह कायम रखे तो बहुत लाभ होगा। अनेक भारतीय अखबारों में चर्चा हो रही है और सभी सहानुभूति प्रदर्शित कर रहे हैं। लॉर्ड लैन्सडाउन जैसे अधिकारी सोच रहे हैं कि यहाँके भारतीय समाजके ऊपर जो जुल्म होता है उसका भारतपर बहुत गहरा असर पड़ता है। इन सब लक्षणोंसे प्रकट होता है कि भारतीय कौमके हाथ अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करनेका अमूल्य अवसर लगा है।
इंडियन ओपिनियन, २९-६-१९०७
४५. कन्याओंकी शिक्षा
अलीगढ़में कुछ समय पहले मुस्लिम जनाना नार्मल गर्ल्स स्कूलकी स्थापना हुई थी और उसकी दिनोंदिन तरक्की होती जा रही है। उस स्कूलको सहायता देनेके लिए सरकारसे प्रार्थना की गई है। उस स्कूलके लिए खास जगह ली गई है और उसके साथ छात्रालय बनानेकी भी योजना है। किंडरगार्टन पद्धतिके अनुसार उर्दमें खास पुस्तकें तैयार की गई हैं। मुसलमान आचार्या न मिलनेके कारण अभी एक गोरी महिलाको २०० रु० वेतनपर नियुक्त किया गया है। इस स्कूलके लिए आजतक १३,००० रु० एकत्र किये गये है।
४६. भाषण: प्रिटोरियाकी सभामें
प्रिटोरिया
३० जून, १९०७
श्री गांधीने कानूनका असर समझाते हुए कहा कि हर भारतीयको, चाहे वह गरीब हो या अमीर, स्वतन्त्र होना चाहिए। यह कानून [साम्राज्यीय] सरकारने मंजूर कर लिया, इससे कुछ नहीं। भारतीय समाजके द्वारा मंजूर होना अभी बाकी है।
१. एशियाई कानूनके प्रति विरोध व्यक्त करनेके लिए श्री ईसप मियाँकी अध्यक्षतामें भारतीयोंकी एक सभा हुई थी। उसमें दिये गये गांधीजीके भाषणका यह सारांश है।