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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

सके उसीमें औचित्य है। कृपाके रूपमें प्राप्त करना दोष है। ऐसा नहीं है कि इसमें बुरे-भले, अमीर-गरीबका भेद नहीं रहता; परन्तु अच्छे-बुरे और अमीर-गरीबका निर्णायक अधिकारियोंको नहीं होना चाहिए।

पूर्णाहुति

श्री गांधीको उपनिवेश कार्यालयसे आज्ञा मिलनेके बाद रिहा कर दिया गया और जोहानिसबर्ग जानेकी अनुमति दे दी गई। जागरूक धरनेदार खबर मिलते ही उपनिवेश कार्यालयके आसपास जमा हो गये थे। उन्हें अधीक्षक बेट्सने बताया कि श्री गांधी चले गये हैं। उन्होंने जवाब दिया कि "अगर वे चले गये होते तो हम जाने बिना नहीं रहते, क्योंकि हमने सब दरवाजे रोक रखे हैं।" इसलिए बाहर निकलते ही धरनेदारोंसे भेंट हुई। [ श्री गांधीने ] उन्हें समाचार दिया कि शुक्रवारके सवेरे सब लोग रिहा हो जायेंगे और कहा कि यह सन्देश अन्य लोगों तक पहुँचा दें।

आधी रातको सभा

श्री अब्दुल्लाने श्री ईसप मियाँको तार दिया था कि अन्तिम गाड़ीपर वे और श्री पोलक श्री गांधीसे पार्क स्टेशनपर मिलें। तदनुसार केवल ईसप मियाँ और श्री अस्वात मिले। उसी समय बहुत-से भारतीय मस्जिदमें इकट्ठा हो गये, और अहातेमें रातके बारह बजे लगभग १,००० भारतीयोंकी सभा हुई। श्री गांधीने उपर्युक्त समझौतेकी बात कही और यह समझाया कि अब जरा भी शोर-गुल किये बिना या जुलूस निकाले बिना, चुपचाप काम करना चाहिए। 'लीडर' का संवाददाता उपस्थित था। उसने सभाका विवरण न छपवानेकी बात मान ली। सब समझ गये कि हमें असलियत से काम है, धूमधामकी आवश्यकता नहीं है। लोग बड़े खुश हुए।

जेलके दरवाजे खुले

शुक्रवारको दिनके बारह बजे जेलके दरवाजे खुल गये। सारे ट्रान्सवालमें कानूनके सम्बन्धमें या परवानोंके सम्बन्धमें जितने भारतीय गिरफ्तार हुए थे वे सब रिहा कर दिये गये। और प्रायः सारा विवरण समाचारपत्रोंमें प्रकाशित हुआ। सब आश्चर्यमें पड़ गये। गोरे भी बहुत खुश हुए। संघके नाम जेल यात्रियोंके लिए बधाईके तार आये। सौसे अधिक तार आये होंगे। उन सबको यहाँ देनेकी जरूरत नहीं है। उसके लिए पर्याप्त स्थान भी नहीं है। इनमें एक तार पोरबन्दरसे, एक अदनसे, और एक विलायतसे भी आया था। कुछ तार गोरोंके भी आये हैं। कुछ गोरोंने [संघके] कार्यालयमें आकर भारतीय कौमको बधाई दी।

प्रगतिवादी दलकी सम्मति

यह समझौता करनेसे पहले श्री स्मट्सने प्रगतिवादी दलकी सम्मति ले ली थी। श्री स्मट्सने २७ तारीखको सर जॉर्ज फेरारके[१] नाम निम्न पत्र[२] लिखा था:

  1. सर जॉर्ज हर्बर्ट फेरार (१८५९-१९१५): "ईस्ट रैंड प्रोप्रायटरी माइन्स" के अध्यक्ष; उत्तरदायी सरकार बननेसे पहले और उसके बाद भी ट्रान्सवाल विधान परिषदके सदस्य।
  2. मूल अंग्रेजी पत्र और उसका जवाब (देखिए अगला पृष्ठ) ८-२-१९०८ के इंडियन ओपिनियनमें प्रकाशित हुआ था।