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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
[ प्रिय सर जॉर्ज फेरार ]

एशियाई अब स्वेच्छया पंजीयनके लिए कह रहे हैं; इसलिए उन्हें दुबारा पंजीयन कराने दिया जाये, तथा शिक्षित और जाने-माने भारतीयोंसे अँगुलियोंकी छाप न ली जाये---ऐसा करनेमें क्या आपको और आपके दलके सदस्योंको कुछ आपत्ति है, कृपया यह पूछ देखें। जान पड़ता है कि इस प्रकार अब जो पंजीयन होंगे उनको सही ठहरानेके लिए संसदको दूसरा कानून बनाना होगा; और यह सम्भव है कि जो पंजीयन स्वेच्छया हों उनपर कानूनकी सजाओंका अमल बंद रखा जाये। जान पड़ता है सरकारसे एशियाई इस प्रकारका निवेदन करेंगे। अतः मैं चाहता हूँ कि इस बातका निपटारा करनेसे पहले आपका अभिप्राय मुझे मिल जाये।

[ आपका, हृदयसे,
जे० सी० स्मट्स]

उत्तर देते हुए सर जॉर्ज फेरारने ३० तारीखको लिखा:

[ प्रिय श्री स्मट्स, ]

आपका पत्र प्राप्त हुआ; मैंने अपने मित्रोंको इसकी जानकारी दी। उससे नीचे लिखे प्रश्न पैदा होते हैं, जिनके उत्तर साथ दिये हैं।

प्रश्न १: एशियाइयोंके लिए दुबारा पंजीयनका द्वार खोल दिया जाये, और उनकी इच्छानुसार उन्हें स्वेच्छया पंजीयन करानेका अवसर दिया जाये, क्या इसमें कोई आपत्ति है?
उत्तर: नहीं, बशर्ते कि इसके लिए अवधि निश्चित कर दी जाये।
प्रश्न २: शिक्षित और जाने-माने एशियाइयोंके सम्बन्धमें अँगुलियोंकी छाप न माँगी जाये, क्या इसमें कोई आपत्ति है?
उत्तर: नहीं, बशर्ते कि शिनाख्त करनेके लिए अन्य योग्य साधन हों।
प्रश्न ३: इस बीच जो व्यक्ति स्वेच्छया पंजीयन करायें, उन्हें कानूनमें कही हुई सजाएँ न दी जाएँ; क्या इसमें कोई आपत्ति है?
उत्तर: नहीं।

आपके पत्रके अन्तिम वाक्यसे क्या मैं यह समझूँ कि एशियाई कौम इस नई रीतिको स्वीकार करना चाहती है और यदि ऐसा भरोसा न हो जाये तो सरकार उपर्युक्त शर्तें स्वीकार नहीं करेगी?

इस सम्बन्धमें हमारे पक्षका क्या कहना है यह मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ।

हम लोग कानूनसे सहमत थे। और अब भी उसपर कायम हैं। उसका उद्देश्य पूरा होना चाहिए। हमें कहना चाहिए कि जो धाराएँ बनाई गई हैं वे सरकार द्वारा बनाई गई थीं, और वे धाराएँ संसदके समक्ष नहीं लाई गई थीं; इसलिए इसके सम्बन्धमें सारा उत्तरदायित्व सरकारको वहन करना है।

हमें लगता है कि सफलताके लिए कानूनका अमल यथासम्भव सौम्य रूपसे किया जाना चाहिए, और जहाँतक सम्भव हो बड़ी सरकारके उत्तरदायित्व और कठिनाइयोंको ध्यानमें रखना चाहिए।

[आपका, हृदयसे,
जॉर्ज फेरार]