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४०. समझौतेके बारेमें प्रश्नोत्तरी

हम देखते हैं कि जो समझौता हो चुका है उसके बारेमें कई सवाल उठे हैं। लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं, और कुछ नासमझ व्यक्ति ऐसा भी कह रहे हैं कि यह जाहिरा जीत कहीं हार तो नहीं है। हमारी समझमें ट्रान्सवालमें भारतीयोंको जो जीत मिली है उसकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि प्रत्येक भारतीयके लिए उसका सही रहस्य समझ लेना ठीक होगा। इसलिए हम प्रायः सभी प्रश्नोंका खुलासा संवादके रूपमें दे रहे हैं। पाठक दो प्रकारके होते हैं। एक तो जागते हुए भी सोनेवाले, अर्थात् समझनेके इरादेसे नहीं, किन्तु केवल द्वेषभावसे और छिद्र खोज निकालनेके लिए पढ़नेवाले; और दूसरे वे जो सचमुच ही नहीं समझते, अर्थात् जो सचमुच नींदमें हैं। हम जो संवाद यहाँ दे रहे हैं वह दूसरे प्रकारके पाठकोंके लिए ही उपयुक्त है। जो नींदमें हो उसे जगाया जा सकता है; किन्तु जो जागता हुआ भी सो रहा है उसे कैसे जगाया जाये? यह संवाद पाठक और सम्पादकके बीच है और हमारी सिफारिश है कि प्रत्येक पाठक इसे बार-बार और बहुत ध्यानसे पढ़े।

प्रस्तावना

पाठक: सम्पादक महोदय, आपने ट्रान्सवालके समझौते के सम्बन्धमें जो लिखा है मेरा इरादा उसके बारेमें कुछ प्रश्न पूछनेका है। यदि आप इजाजत दें, तो पूछूँ।

सम्पादक: निःसन्देह पूछिए। हमारा काम अपनी बुद्धिके अनुसार अपने पाठकोंको खबरें और जानकारी देनेका है। हमारा ध्येय समाजकी सेवा करना है। यह लोगोंकी शंकाएँ दूर करनेपर ही हो सकता है।

प्रश्न पूछनेसे पहले एक बात याद रखें; अपने यहाँ कहा जाता है कि अधिकार अर्थात् योग्यता न हो तो जवाब समझमें नहीं आ सकता। जैसे जोड़ने और घटानेकी जानकारीके बिना कोई गुणा और भागके प्रश्न पूछे तो वह उन उत्तरोंको समझनेका अधिकारी नहीं है---उसके पास वह योग्यता नहीं है; इसी प्रकार प्रश्नोंके सम्बन्धमें आपकी योग्यता यह होनी चाहिए कि आप जो प्रश्न पूछें वे निर्मल हृदयसे, देशके हितके वास्ते, और ईश्वरको साक्षी रखकर पूछे जायें। यदि आपमें इतनी पात्रता हुई तो हमारा उत्तर समझनेमें कोई कठिनाई नहीं होगी। जो शर्त आपपर लागू होती है वह हमपर भी लागू होती है। हमारा उत्तरदायित्व अधिक है, इसलिए ये तीनों शर्तें हमें अधिक सम्हालनी हैं। अतएव जो प्रश्न आप करेंगे उसका उत्तर हम निर्मल हृदयसे, देशके कल्याणके वास्ते और ईश्वरको साक्षी समझकर ही देंगे। अब आप बेखटके सवाल पूछें।

इसे जीत कैसे कह सकते हैं?

पाठक: आपने लिखा है कि ट्रान्सवालके भारतीयोंने सम्पूर्ण विजय पाई है, और वे जो माँगते थे उससे ज्यादा ही मिला है। मैं यह ठीक-ठीक नहीं समझ पाया।

सम्पादक: आपको 'इंडियन ओपिनियन' के पिछले अंकोंको देख जाना पड़ेगा। ध्यानसे देखने पर पता चलेगा कि भारतीय कौमकी माँग स्वेच्छया पंजीयन करवाकर कानूनको रद