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समझौतेके बारेमें प्रश्नोत्तरी

विरोध किया। यह उचित था। शौकके लिए अथवा और किसी कारणसे हिन्दू-मुसलमान तसवीर उतरवाते हैं। इससे आप देख सकते हैं कि बहुत-सी वस्तुएँ किसी हेतुके अनुसार ही अपमानजनक या सम्मानजनक हो सकती हैं।

पाठक: अब ऐसा लगता है कि मैं समझ रहा हूँ। किन्तु मनमें यह प्रश्न पैदा होता है कि क्या इस तरह सभी वस्तुएँ किसी एक अवसरपर अच्छी और दूसरे अवसरपर बुरी हो सकती हैं?

सम्पादक: ऐसा तो हो ही नहीं सकता। उपर्युक्त लड़ाईकी बात सभी वस्तुओंपर लागू नहीं होती। कुछ वस्तुएँ देश और कालके अनुसार खराब या अच्छी होती हैं। कुछ ऐसी होती हैं जो सदा और सब जगह खराब या अच्छी होती हैं। खुदाका नाम लेना हमेशा और सभी जगह अच्छा है। व्यभिचार हमेशा और सब जगह खराब है। नियम यह है कि जिस वस्तुमें अपने-आपमें पाप---बुराई---नहीं होती, उसी वस्तुपर उक्त नियम लागू किया जा सकता है।

पाठक: आपके ही ढंग से देखें तो दस अँगुलियोंकी छाप देनेमें आपत्ति नहीं है, ऐसा मेरी समझमें आ रहा है। लेकिन गोरे मजाक उड़ा रहे हैं कि "क्यों, अब तो दस अँगुलियोंकी छाप दोगे न?" "पियानो बजाने में अब शर्म छूट गई ?"[१] "धर्मकी बड़ी-बड़ी बातें करते थे, वे कहाँ गईं?" वे इस प्रकारके प्रश्न पूछ-पूछकर चिढ़ाते हैं। "क्रिटिक" में तो व्यंग्य-चित्र[२] भी छापा गया है। उसमें बताया है कि शिक्षितोंका और व्यापारियोंका धर्म तो बच गया, औरोंका गया। इस चित्रमें श्री गांधी गर्वके साथ कुर्सीपर बैठकर हस्ताक्षर कर रहे हैं और गरीब भारतीय लाचार होकर खड़े-खड़े अँगुलियोंकी छाप लगा रहे हैं और उनकी अँगुलियोंसे काली काली स्याही टपक रही है। यह दुःख कैसे सहा जाये? कैसे देखा जाये?

सम्पादक: यह प्रश्न झूठे अभिमानका लक्षण है। गोरोंके कहनेसे हमारी प्रतिष्ठा नहीं चली जाती। हमने खुदाका सहारा लिया था। इसलिए इस बातपर विचार करना चाहिए कि हमें वह क्या कहता है। बहुत सारे गोरे तो हमारी लड़ाई समझे नहीं हैं। बहुतोंको यह पता नहीं है कि हमारी लड़ाई जिस कानूनके खिलाफ थी, वह तो हम लोग वचनका पालन करेंगे तब रद होगा। जब वह समय आयेगा तब बहुतोंकी आँखें खुलेंगी। फिर सभी गोरे ऐसा नहीं कहते। विलायत-भरके समाचारपत्र हमारी प्रशंसा करते हैं, और हमारी जीत मानते हैं। जोहानिसबर्गका 'रैंड डेली मेल' तो सरकारके विरुद्ध बहुत कड़ा लेख लिखता है कि उसने भारतीयोंको सब-कुछ दे डाला। 'संडे टाइम्स' ने व्यंग्य-चित्र[३] प्रकाशित करके बताया है कि जनरल स्मट्सका स्टीमरोलर बिखरकर चूर-चूर हो गया है, और भारतीय हाथी पीछे घूमकर उन्हें डाँट रहा है। अनेक समझदार गोरे तथा बाहरके प्रायः सभी मनुष्य भारतीयोंकी जीतका डंका बजा रहे हैं। तथापि यदि ऐसा न हो तो भी हम यह याद रखें कि हमें "आम

 
  1. जिन लोगोंने सत्याग्रह आन्दोलनमें भाग नहीं लिया था---अर्थात् कलमुँह और नये कानूनके अन्तर्गत पंजीयन प्रमाणपत्र प्राप्त करनेके प्रयोजनसे अपने प्रार्थनापत्रोंपर अपनी अँगुलियोंके निशान देनेके लिए पंजीयन कार्यालयमें गये थे, उनका मजाक उड़ाते हुए सत्याग्रहियोंने आरम्भमें ही कहा था कि वे वहाँ "पियानो बजानेके लिए" जाते हैं।
  2. देखिए व्यंग्य-चित्र पृष्ठ ७२ के सामने।
  3. देखिए व्यंग्य-चित्र पृष्ठ ७३ के सामने।