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समझौतेके बारेमें प्रश्नोत्तरी

फिर यह भी आपको सोचना चाहिए कि जिनको अगुआ मान लिया गया हो उनको ऐन मौकेपर कुछ हदतक छूट होनी ही चाहिए। ऊपरके समझौतेमें उस प्रकारकी छूट ली गई है, यह हम स्वीकार नहीं करते। लेकिन इस अवसरपर नेताओंके प्रति आवश्यक कर्त्तव्योंके सम्बन्धमें दो शब्द कहना उचित जान पड़ता है। नेताओंको चुनते समय बहुत विचार करना चाहिए। लेकिन एक बार जिसको अगुआ मान लिया उसको छूट न रहे तो कई बार बहुत हानि होती है। हर घड़ी पूछनेकी जरूरत बनी रहे तो यह अविश्वासका सूचक है। जहाँ विश्वास नहीं होता वहाँ पूरा काम भी नहीं हो पाता। नेताओंपर भरोसा रखा जाये, यह एकदिली, बड़प्पन और जनताके जोशका लक्षण है। ऐसा कोई समाज, जिसके अगुआ ईमानदार और विश्वसनीय नहीं हैं, कभी आगे नहीं बढ़ सकता। नेताओंसे कभी-कभी शुद्ध बुद्धिसे भूल हो जाती है। इससे उन्हें दोष नहीं देना चाहिए। एक ही कसौटी है---और वह है ईमानदारी। जिसमें ईमानदारी है उसका भरोसा करना उत्तम मार्ग है।

उपसंहार

पाठक: अब तो पूछने योग्य कोई प्रश्न नहीं सूझता। मैं इस लड़ाईका अन्तिम परिणाम क्या मानूँ?

सम्पादक: हम आशा करते हैं, और ईश्वरसे प्रार्थना करते हैं कि जो उत्तर शुद्ध बुद्धिसे दिये हैं, वे आप तथा और जो कोई पढ़ें, उनके लिए कल्याणप्रद हों। अन्त क्या होगा यह हमारे-आपके हाथकी बात है। जो साहस हमने दिखाया है वही साहस नित्य बनाये रखें तो खूनी कानूनके बननेमें रुकावट होगी, ऐसा हम मानते हैं। भारतीय कौमका सम्मान तो अब बहुत ही बढ़ गया है, यह सभी जानते हैं। यही बड़ी बात है। सम्मान बढ़ानेके ध्येयसे ही यह लड़ाई लड़ी गई थी। अब हम पाई हुई पूँजीको सम्हालें तो बड़ा ही लाभ होगा। ऐसा होना चाहिए कि हर जगह सत्याग्रहका चलन हो जाये। यदि यह हुआ तो भारतीय समाज सब प्रकारसे विजय प्राप्त करेगा।

आनेवाले तीन महीनोंमें भारतीय कौम योग्य बरताव करे या न करे, स्वेच्छया पंजीयनका अपना प्रण पाले या न पाले, फिर भी सत्याग्रहकी पूरी-पूरी जीत हुई है, इसमें कसर नहीं रहती। आप अब भी कदाचित् यह मानें कि अँगुलियोंकी बात कायम रही, सो भूल हुई है। इससे भी सत्याग्रह निस्तेज नहीं बनता। वह सब प्रकारसे विजयी हुआ है। दस अँगुलियोंकी छाप स्वीकार करनेवालोंपर दोष लगाना चाहें तो भले लगायें। परन्तु यह बात पक्की समझें कि सत्यकी विजय हुई है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १५-२-१९०८