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४१. नेटालमें परवाने

एस्टकोर्टमें व्यापारके लिए परवाने नहीं दिये गये हैं। स्टैजरमें श्री काजीकी दूकानके सिलसिलेमें परेशानी हुई है। और जगहोंमें भी होगी। ऐसी स्थितिमें नेटालके भारतीय व्यापारी अपना धंधा कैसे कर सकेंगे?

मार्ग दो हैं। एक तो यह कि स्वर्गीय श्री लैबिस्टरकी सलाहके अनुसार मुकदमा लड़ा जाये। इसके लिए किसी नगरपालिकापर दावा करना चाहिए। इसमें बड़ा खर्च और बहुत झंझट है। फिर इसमें जीत होगी ही ऐसा भरोसा नहीं है।

दूसरा मार्ग सरल मानें तो सरल, और कठिन कहें तो कठिन है। वह है सत्याग्रहका। क्योंकि यहाँ सत्याग्रह करनेपर कैदकी सजा तो होती नहीं है, इसलिए जो व्यक्ति बिना परवानेके व्यापार करेगा उसपर सिर्फ जुर्माना हो सकता है। जुर्माना न दे तो भी जेल नहीं भेजते, उसका माल बेच दिया जाता है। फिर एक बार मालके बिक जानेपर वर्षभर तक व्यापार नहीं हो सकता। माल बार-बार बिक सकता है। ऐसा हुआ तो तबाही हो जायेगी; किन्तु सभी महान कार्योंमें भारी त्यागकी आवश्यकता होती ही है। एक भक्तने कहा है कि "भक्ति करना सिरका सौदा है, और इसका मार्ग विषम है।"[१] सत्याग्रहमें देशभक्ति निहित है ही। इसलिए उसमें सिर अर्थात् मस्तक देनेकी बात तो जुड़ी ही है। सत्याग्रह केवल अपने स्वार्थ-साधनके लिए नहीं किया जा सकता। सबके भलेके लिए ही हो सकता है।

ट्रान्सवालके मुकाबले नेटालके व्यापारियोंके लिए इस प्रकारकी लड़ाई लड़ना कुछ कठिन प्रतीत हो सकता है। किन्तु सही-सही विचार करें तो वह सरल है। कठिनाई यह है कि लोग तुरन्त बहाना बतायेंगे कि जेल तो हम जा सकते हैं लेकिन सामान नीलाम नहीं होने देंगे। यह भी एक बात है कि इस लड़ाईमें पूरीकी-पूरी कौम शामिल नहीं हो सकती; इसलिए चन्द लोगोंको ही जोर लगाना होगा। सरलता यह है कि हमारे अनुभवके मुताबिक तो भारतीय और अन्य सभी कौमें आम तौरसे जेलसे डरती हैं, और सामान बिक जाने देती हैं। फिर सामानको जाने देनेमें ज्यादा खतरा नहीं है, और चतुर आदमी हिकमतसे छका सकता है। खास जरूरत इस बातकी है कि अगर एक मनुष्यको परवाना न मिले ( अन्यायपूर्वक ), तो सभी लोग बिना परवाना व्यापार करें। जिस प्रकार सभी लोगोंको सरकार जेलमें बन्द नहीं कर सकती उसी प्रकार वह सब लोगोंका माल भी नहीं बेच सकती। इसलिए ऐक्यकी बड़ी आवश्यकता है। हम यह नहीं कहते कि सभी व्यापारी अर्थात् सारे नेटालके व्यापारी परवानोंके बिना व्यापार करें; परन्तु केवल उस-उस नगरके अथवा प्रदेश (या डिविजन) के व्यापारी अनुमतिपत्रके बिना व्यापार करें।

यह हो सकता है कि सब लोगोंको परवाने मिल जानेके बाद भी कुछको न मिलें। ऐसा हो तो जिनको न मिले हों वे मरनेके लिए तैयार होकर दूकानें खुली रख सकते हैं। ऐसा करनेके लिए चतुराई और समय-सूचकता चाहिए। एक बात तो यह भी हो सकती है कि ऐसी दूकान रखी जाये जिसमें बेंच आदि सामान मकान मालिकका हो। सामान बहुत

 
  1. "भक्ति शीषतणु साई आगळ वसमी छे वाटु।"