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४३. जोहानिसबर्गको चिट्ठी

ब्रिटिश भारतीय संघ

ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय संघने बड़े पैमानेपर चन्दा इकट्ठा करना शुरू कर दिया है। यह निश्चय किया गया है कि किसीसे दस शिलिंगसे कम न लिये जायें और सब लोग भरसक उससे अधिक दें। चन्देका मुख्य हेतु यह है कि जोहानिसबर्गमें एक विशाल सभाभवन बनाया जाये। दक्षिण आफ्रिकामें कहीं भी भारतीयोंकी प्रतिष्ठाके योग्य भवन नहीं है। यह एक बड़ी कमी है। जोहानिसबर्गमें इस प्रकारका सभाभवन बनाना बहुत उचित कहलायेगा, इसमें सन्देह नहीं है। हर प्रमुख समाजके पास इस प्रकारका सभाभवन केप टाउन, डर्बन, मैरित्सबर्ग आदि सभी जगह होना चाहिए। इसका न होना हमारी दीनताका सूचक है। अतः ट्रान्सवालके लोगोंने जोहानिसबर्गमें भवन बनानेका विचार किया है।

इसके सिवा लॉर्ड ऐम्टहिल[१] और सर मंचरजी भावनगरीको[२] उनके अमूल्य कामके लिए सुन्दर मानपत्र भेजने का भी लोगोंने इरादा किया है। और श्री पोलक तथा कुमारी स्लेशिनकी, जिन्होंने दिन-रात जी-तोड़ परिश्रम किया है, एवं उनके समान परिश्रम करनेवाले अन्य अनेक गोरोंकी, कद्र करनेका विचार किया गया है। यह सब खर्च भी इसी चन्देमें से करना है।

दस शिलिंगकी टिकटोंपर श्री ईसप मियाँके अपने ही हाथके हस्ताक्षर भी छपे हैं। बाईं ओर पैसे लेनेवालेके हस्ताक्षरकी जगह है। इस प्रकारकी रसीदकी किताबें कई जगह भेज दी गई हैं। सब लोग पैसे जमा करके संघके मन्त्रीके पास तुरन्त भेज दें। रसीदके दूसरे हिस्सेमें पैसे देनेवालेका नाम ठीक तरहसे लिखें और रसीद लिये बिना कोई भी व्यक्ति पैसा न दे। चन्दा तुरन्त इकट्ठा करके भेज देना जरूरी है। प्रत्येक व्यक्तिको मेरी सलाह है कि संघर्षकी स्मृतिके रूपमें वह इस रसीदको सँभाल कर रखे। दुबारा और कोई माँगने आये तो वह दिखाई भी जा सकती है। अगर बहुतसे व्यक्ति चन्दा जमा करनेमें हाथ बँटायें तो स्वेच्छया पंजीयन समाप्त होनेसे पहले वह पूरा हो जायेगा।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, १५-२-१९०८
 
  1. आर ओलिवर विलियर्स रसेल, ऐम्टहिलके द्वितीय बैरन (१८६९-१९३५); १९१८ में स्थापित नेशनल पार्टी (राष्ट्रीय दल) के एक संस्थापक; दलकी परिषदके अध्यक्ष, १९१९; मद्रासके गवर्नर, १८९९-१९०६; भारतके स्थानापन्न वाइसरॉय और गवर्नर जनरल, १९०४; डोक द्वारा लिखी गई गांधीजीकी जीवनीके प्रस्तावना लेखक।
  2. सर मंचरजी मेरवानजी भावनगरी (१८५१-१९३३)। ये इंग्लैंडमें बसे एक पारसी बैरिस्टर थे। यूनियनिस्ट दलकी ओरसे १० वर्षतक ब्रिटिश लोकसभाके सदस्य रहे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी लन्दन-स्थित ब्रिटिश समितिके सदस्य भी थे। इन्होंने दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंके कष्टोंके सम्बन्धमें इंग्लैंडमें लोकमत तैयार करनेमें बहुत सहायता दी थी।