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सत्याग्रहका भेद

उसको मार डालनेपर तुल गई। फिर भी उसने दृढ़ता से कहा, "आप मुझे मारें या न मारें, पृथ्वी तो घूमती है ही।" आज हम सब जानते हैं कि पृथ्वी गोल है और चौबीस घंटेमें वह अपनी धुरीपर एक चक्कर लगा लेती है। कोलम्बसने अपने नाविकोंके विरोधमें सत्याग्रह किया। बहुत थक जानेपर नाविकोंने कहा, "अब अमेरिका मिलनेवाला नहीं है। लौट चलो, नहीं तो मार डालेंगे।" धैर्यवान कोलम्बसने उत्तर दिया कि "मुझे मरनेका डर नहीं है; अभी और थोड़े दिनों यात्रा करना ठीक होगा।" अन्तमें उसने अमेरिकाको खोज लिया और वह अमर हो गया।

ऐसी अजीब औषधि है यह सत्याग्रह। हम डरके मारे कहते हैं कि "सरकारने अगर कानून रद नहीं किया तो?" ऐसा कहना सत्याग्रहकी खामी बताना है। मानो सत्याग्रहके शस्त्रसे अब हम कुछ प्राप्त नहीं कर सकते, ऐसी कायरताकी बातें हम लोग किया करते हैं। परन्तु हमें अपने सत्याग्रहसे विदित होता है कि अब हम मुक्त हो गये हैं। इसलिए हमारे भय करनेकी कोई बात नहीं है। "ये सब तो कहनेकी बातें हैं। दुबारा लड़ चुके। एक बार लड़कर भर पाया।" कुछ लोग ऐसा भी कहते हैं। ऐसा कहनेवाले सत्याग्रही कभी नहीं थे। अगर "हम लोग ऐसी लड़ाई लड़ चुके"---यह कहना सही हो, तो हमारा लड़ना-न- लड़ना समान है।

अब हम उपर्युक्त कथन सिद्ध करेंगे। देखनेमें आता है कि कोई चीज जिस साधनसे प्राप्त होती है उसीके द्वारा उसे बनाये रखा जा सकता है। शेर किसी प्राणीको बलसे पकड़ता है, और उसे बलसे दबाये रखता है। जो लोग बल-प्रयोगसे कैद किये जाते हैं वे बलके द्वारा ही वहाँ रोके भी जाते हैं। बल-प्रयोगसे जीते हुए मुल्कको बादशाह बलसे ही वशमें रखते हैं। उसी प्रकार प्यारसे ली गई वस्तु प्यारसे रखी जाती है। माँ अत्यन्त प्यारसे बच्चेको उदरमें रखती है। और अत्यन्त प्यारसे उसे पाल-पोसकर बड़ा करती है। बचपनमें उसपर की जानेवाली मारपीट आदिको बल-प्रयोग न माना जाये। इसके सिवा यदि किसी कारण माँ बच्चेपर प्रेम करना बन्द कर देती है तो बच्चा हाथसे निकल जाता है, ऐसे उदाहरण भी देखनेमें आते हैं। इसी प्रकार, जो वस्तु सत्याग्रहसे प्राप्त हुई है, वह सत्याग्रहसे ही टिकी रह सकती है। और यदि सत्याग्रह गया तो वह वस्तु भी निश्चित रूपसे गई समझें। अगर कोई मनुष्य सत्याग्रहसे प्राप्त की गई वस्तुको शरीर-बलसे सम्हालकर रखना चाहे तो यह असम्भव है। मान लीजिए कि भारतीयोंने जो जीत सत्याग्रहसे पाई है उसका फल अब वे शरीर-बलसे सम्हालकर रखना चाहें, तो यह बात एक बच्चा भी समझ सकता है कि वे एक मिनटमें कुचल दिये जायेंगे। इसी प्रकार सत्याग्रह छोड़कर बैठ जायें तो जो पाया है उसे फिरसे गँवा देना पड़ेगा।

इन उदाहरणोंसे यह बात समझमें आ जानी चाहिए कि सत्याग्रह मनकी स्थिति है। और जिसके मनकी स्थिति सत्याग्रही बन गई है वह सदैव, सब जगह, सभी परिस्थितियोंमें विजयी ही है। चाहे फिर उसके विरोधमें राजा हो या प्रजा, अपरिचित हो या परिचित, पराया हो या अपना।

ऐसे चमत्कारी सत्याग्रहको हम लोग नहीं समझते, इसी कारण भारतमें हम दीन-हीन और निस्तेज होकर रहते हैं। और यह केवल सरकारके ही सम्बन्धमें नहीं, व्यक्तिगत सम्बन्धमें भी ठीक है। हम लोग अपने देशकी कुछ स्पष्टतः हीन रूढ़ियोंको बनाये हुए हैं;