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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इनका प्रधान कारण सत्याग्रहका अभाव है। हम लोग जानते हैं कि अमुक चीज खराब है, किन्तु भय, आलस्य अथवा झूठी शर्मके कारण हम उसे नहीं छोड़ते।

इस लेखको समाप्त करते हुए एक आखिरी और ताजा उदाहरण हम देंगे। प्रिटोरिया टाउन हॉलमें जब गोरोंने भारतीयोंके विरोधमें सभा की, तब हमारे पक्षमें बोलनेवाले केवल चार गोरे थे। अर्थात्, हजार मनुष्योंके विरुद्ध चार थे। फिर भी इन चार व्यक्तियोंने लोगोंकी गालियाँ खाते रहकर भी अपना मत वीरतासे प्रकट किया। और परिणाम यह हुआ कि उनके सत्याग्रहसे पूरी सभाका महत्त्व जाता रहा और वह सभा किसी पशु-शाला जैसी होकर रह गई।

हम प्रत्येक भारतीयसे सिफारिश करते हैं कि वह इन विचारोंको अच्छी तरह समझ ले। जो समझ जायेंगे वे जीतका स्वरूप जान सकेंगे और भारतीय प्रजाको आगे भी जो कार्य करने हैं उन्हें कर सकेंगे।

[ गुजरातीसे
इंडियन ओपिनियन, २२-२-१९०८

४६. मेरा सम्मान[१]

आरम्भ

मुझपर मार पड़ी, इसपर स्वयं मुझे जरा भी अचम्भा नहीं है। नौ तारीखको ही मैं कह चुका था कि नया कानून रद करनेका वचन मिलनेपर अब कानूनके बाहर दस अँगुलियोंकी छाप देनेमें मैं तौहीन नहीं मानता; यही नहीं, बल्कि इसमें अपना सम्मान समझता हूँ। मस्जिदके सामने जो सभा हुई थी उसमें जब स्वेच्छया अँगुलियोंके निशान देनेमें भारतीयोंपर जबर्दस्ती रोक लगाई गई, तब मुझे लगा कि अगर मुझमें सच्चा सत्याग्रह हो तो मुझे स्वयं अँगुलियोंकी छाप देनी ही चाहिए; इसलिए उस समय मैंने कसम खाकर कहा कि सोमवारके दिन यदि मैं जीवित रहा तो निश्चय ही अँगुलियोंकी छाप दूँगा। अपने इस कथनपर मुझे अब भी कोई अफसोस नहीं है, बल्कि मैं यह मानता हूँ कि मैंने अपने ईश्वरके प्रति और अपनी कौमके प्रति अपना कर्तव्य पूरा किया है। सोमवारको सवेरे पौने दस बजे श्री ईसप मियाँ, श्री नायडू, और अन्य भारतीयोंके साथ जब मैंने पंजीयन कार्यालयकी ओर प्रस्थान किया तभी मैं समझ गया था कि किसी प्रकारका हमला होगा। मारनेवालोंमें से दोको मैंने कार्यालयके पास देखा। वे भी साथ हो लिये। तब बात और भी साफ हो गई। परन्तु जैसा मैं कह चुका हूँ, मैंने विचार किया कि अपने भाइयोंके हाथ मार खानेमें रत्ती-भर भी दुःख नहीं मानना चाहिए।

आगे चलनेपर उनमें से एक व्यक्तिने पूछा: "सब किधर जाते हो?"

श्री ईसप मियाँ जवाब देनेवाले ही थे कि मैं बीचमें पड़ा और बोल उठा: "मैं दस अँगुली देनेकू जाता हुँ।

 
  1. यह लेख "श्री गांधी द्वारा प्रेषित" रूपसे इंडियन ओपिनियनमें छपा था।