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मेरा सम्मान

दुसरे भी ओ ही करेंगे। तुमारे अंगुठा देना होगा तो तुम देने सकते है।"[१] इसके बाद क्या हुआ मुझे नहीं मालूम। केवल इतना ही स्मरण है कि मुझपर सख्त मार पड़ी।

मेरी बायीं पसलीमें बड़ी सख्त चोट आई है। साँस नहीं लेते बनती। ऊपरका ओंठ आधा चिर गया है। उसमें टाँके लगाये गये हैं। बाँई आँखपर काला दाग पड़ गया है और कपालपर घाव है। इसके सिवा दायें हाथपर और बायें घुटनेपर मामूली जख्म हैं। प्रहार कैसे हुआ इसका मुझे भान नहीं है, लेकिन लोगोंका कहना है कि मुझपर लकड़ीकी पहली चोट पड़ते ही मैं चक्कर खाकर गिर पड़ा। फिर उन्होंने लोहेके नल और लाठी और लातोंसे मारना शुरू कर दिया। और अन्तमें मुझको मरा समझकर रुक गये। मैं पीटा गया इसकी मुझे कुछ-कुछ याद है। मार पड़ते ही मेरे मुँहसे "हे राम" शब्द निकले ऐसा भी भान होता है। श्री थम्बी नायडू और श्री ईसप मियाँने बीच बचाव किया। इस कारण नायडूपर भी काफी प्रहार हुए। उनका कान चिर गया। श्री ईसप मियाँकी अँगुलीपर थोड़ी-सी चोट आई। जब बेहोशी दूर हुई तब मैं हँसता हुआ उठा। मेरे मनमें जरा भी तिरस्कार अथवा रोष मारनेवालेपर नहीं था।

अब सोचता हूँ तो समझमें आता है कि मौतसे हम लोग व्यर्थ ही डरते हैं। मैं तो मानता हूँ कि बहुत समयसे मैंने डरना छोड़ दिया था। परन्तु अब तो और भी निडर बन गया हूँ। अगर मेरी मूर्छा न टूटती तो बादमें जो दुःख भोगना पड़ा, वह न भोगता। इससे स्पष्ट होता है कि दुःख केवल तभी तक होता है जबतक शरीरके साथ जीवका घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है। जीव जब शरीर के साथ पूरा सम्बन्ध अनुभव करने लगा तब ही मुझको दुःखका भान हुआ।

दोष किसीका नहीं

अपने पीटे जानेके लिए मैं किसीको दोष नहीं देता।[२] मारनेवाले कभी मेरी बड़ी आव-भगत करते थे। अब मारनेपर उतर आये हैं। जिन दिनों मेरा सम्मान करते थे उन दिनों उनकी मुझपर आस्था थी। जब उन्होंने मारा तब यह समझकर कि मैंने उनका और कौमका बुरा किया है। कुछको ऐसा लगा कि मैंने सरकारको दस अँगुलियोंकी छाप देना स्वीकार करके अपनी कौमको बेच डाला है। ऐसा मान लेनेपर वे मुझे क्यों न मारते? यदि उनमें विवेक होता तो वे मारनेका रास्ता अपनानेके बजाय किसी और ढंगसे मेरे प्रति तिरस्कार प्रकट करते। फिर भी उनके मनमें कारण तो वही होता। मेरा अनुभव है कि कुछ लोगोंके पास अपनी नाराजगी जाहिर करनेका एक ही रास्ता होता है। वे शरीर बलको ही सर्वोच्च मानते हैं। तब मैं किस प्रकार गुस्सा करूँ? उनपर मुकदमा चलानेसे क्या फायदा? मेरा सच्चा कर्त्तव्य यही है कि उन्होंने मुझपर जो आक्षेप लगाया है उसे गलत सिद्ध कर दूँ। यह सिद्ध करने के लिए समय चाहिए। तबतक संसारकी रीतिके अनुसार मारधाड़ चलती ही रहेगी। इस स्थितिमें समझदारोंके लिए यही उचित है कि वे इस प्रकारके दुःखोंको धैर्यपूर्वक ही

 
  1. मूलमें ये शब्द हिन्दीमें ही हैं। भाषा अथवा मात्राओंमें परिवर्तन नहीं किया गया।
  2. गांधीजीने महान्यायवादीको तार देकर वास्तवमें सूचित भी किया कि मुझे मारनेवाले लोग अपराधी नहीं हैं। देखिए दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास, अध्याय २२। यह तार उपलब्ध नहीं है।