पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/१२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९३
मेरा सम्मान

जिस समाजमें इस प्रकारके मनुष्य मिलते हों वह समाज यदि आगे बढ़े तो इसमें क्या आश्चर्य है? और जिस धर्मके अन्दर ऐसे सुकोमल, दयालु और सच्चे कुलीन मनुष्य मौजूद हों, उस धर्मको झूठा भी कैसे कहा जाये? यह सब करनेमें ईश्वरको प्रसन्न करना ही उनका एकमात्र हेतु था। मेरे पास आकर प्रायः रोज रातको अपनी पद्धतिके अनुसार वे ईश्वरकी प्रार्थना भी करते थे। घरके भीतर भी हमेशा भोजनके समय आरम्भसे पहले और समाप्तिके बाद प्रार्थना करते थे। वे अपने बाल-बच्चोंसे भी बारी-बारीसे बाइबलमें से कुछ पाठ पढ़वाते थे। मुझे तो इसमें जरा भी स्वार्थ-दृष्टि दिखाई नहीं पड़ी, और उनके अपने बर्ताव तथा बालकोंके शिक्षणमें भी सचाई ही दृष्टिगोचर होती थी। वे जो कुछ करते थे उसमें दम्भ अथवा औरोंको अच्छा लगे इस दृष्टिसे कुछ किया गया हो ऐसा मैंने नहीं देखा। इस प्रकारकी एकरूपता और इस हदतक अच्छाई हिन्दू या मुसलमान धर्मगुरुओं अथवा गृहस्थोंमें बहुत देखनेमें नहीं आती। अंग्रेजोंमें भी बहुधा ऐसा होता है सो नहीं कहा जा सकता। कहाँ कम होगा, कहाँ अधिक, इसके विवेचनमें न पड़कर मैं यही कामना करता हूँ कि श्री डोक और उनके कुटुम्ब जैसे सैकड़ों भारतीय कुटुम्ब हों।

चिकित्सा

मुझे सख्त मार पड़ी थी और मेरे घाव गहरे थे, फिर भी डॉक्टरोंके कथनानुसार मैं जिस तेजीसे स्वस्थ हुआ उस तेजीसे अधिकतर रोगी स्वस्थ होते नहीं देखे गये। मैं डॉक्टरोंके हाथमें था, फिर भी दवा तो केवल घरेलू ही थी। पहले दो दिन मैंने कुछ भी खाया-पिया नहीं। इस कारण मेरा ज्वर नहीं बढ़ा। तीसरे दिन मुझको ज्वर बिलकुल नहीं था। दस तोले दूधसे मैंने आहार शुरू किया और धीरे-धीरे अंगूर और नाशपाती तथा अन्य फल आदि बढ़ाये। बादमें दूधमें भिगोई हुई डबल रोटी एक बार लेना शुरू किया। और अब भी वही आहार चल रहा है। ऊपरवाले तीन दाँतोंको क्षति पहुँचनेके कारण स्थिति यह है कि कड़ी वस्तुएँ कुछ दिनों तक नहीं खाई जा सकेंगी। मुँह और सिरपर घावके साथ-साथ बेहद सूजन थी। उसपर स्वच्छ गीली मिट्टीकी पट्टी रखी जाती थी। इससे सूजन बिलकुल कम हो गई। पसलियोंमें सख्त चोट आई थी। वहाँपर मिट्टीकी बहुत मोटी पुल्टिस बाँधनेसे उसमें बहुत-कुछ आराम है। डॉक्टरका खयाल था कि घावपर मिट्टीकी पट्टी रखनेसे शायद घाव विषाक्त हो जाये। परन्तु यह मैंने अपनी जिम्मेदारीपर किया था। लेकिन डॉक्टरको भरोसा हो गया है कि मिट्टीसे बड़ा लाभ हुआ। आम तौरसे इस प्रकारके घाव, जिनमें टाँके लगे थे, पके बिना नहीं रहते। मेरी ऐसी धारणा है कि मिट्टीका लेप करनेसे घाव बिना पके भरने लगता है। और हुआ भी वैसा ही है। मैंने मिट्टीके बहुत उपचार किये हैं। मुझे लगता है कि समझदारीसे प्रयोग किया जाये तो उससे अनेक रोगोंमें लाभ पहुँचता है। किसी समय इसके बारेमें अपने अनुभव 'इंडियन ओपिनियन' के पाठकोंके सामने रखनेकी आशा करता हूँ।

सारांश

उपर्युक्त विवरण लिखनेका उद्देश्य केवल समाचार देना अथवा साप्ताहिकके पन्ने भरना ही हो, ऐसा नहीं है। उद्देश्य यहीं है कि मेरे अपने अनुभव औरोंके लिए उपयोगी साबित हों। मार पड़ी, इससे भारतके प्रत्येक सेवकको यही सार निकालना है कि यदि