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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कौमकी सेवा करनी हो, और साथ ही साथ नित्य सचाई ही बरतनी हो तो, मार भी खानी पड़ेगी। इसमें यदि दुःख न मानें तो आत्माको अधिक शान्ति और सुख प्राप्त होता है। और उस हदतक कौमकी सेवा करनेके लिए अधिक सामर्थ्य प्राप्त होता है। इस प्रकारकी मार सचमुच सम्मान है, ऐसा माना जा सकता है। श्री डोकका कार्य हमारे सबके लिए कल्याणदायी है, और जो घरेलू औषधि बताई वह भी समझने योग्य है। श्री डोक नाम धन्यवादके प्रायः चालीस तार भिन्न-भिन्न स्थानोंसे आये थे; और कुछ भारतीयोंने उनके पास फल, मेवे, आदि उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करनेके निमित्त भेजे थे।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २२-२-१९०८

४७. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

श्री ड्रूका पत्र

'ब्लूमफॉन्टीन फ्रेंड' के सम्पादक श्री ड्रू[१] जो ऑरेंज उपनिवेशकी धारासभाके सदस्य हैं, अपने पत्रमें लिखते हैं:

मैं समझता था कि चूँकि आप थोड़ी ही अवधिके बाद कारावाससे छूटकर जीत गये, इसलिए इसे आसानीसे प्राप्त जीत कहा जाये। लेकिन अब देखता हूँ कि पूरा-पूरा कष्ट सहन किये बिना पार पाना आपके नसीबमें नहीं था। परन्तु मुझे उम्मीद है कि इतना उत्कृष्ट और सम्मानास्पद जो समझौता हुआ है आपकी कौम उसे स्वीकार करेगी। अगर वह इसे कबूल नहीं करेगी तो एक भी यूरोपीयकी सहानुभूति भारतीयोंके प्रति नहीं रहेगी।

श्री ड्रूके ये शब्द विचारणीय हैं। जब और लोग हमारे विरुद्ध थे तब श्री ड्रूकी सहानुभूति पूर्णतया भारतीयोंके प्रति थी। 'इंडियन ओपिनियन' के पाठक यह जानते हैं। श्री ड्रूने निजी तौरपर सहायता भी बहुत की है। उनके जैसे व्यक्ति जब ऐसा लिखते हैं तब हमें समझना चाहिए कि हद हो गई।

पंजीयन कार्यालय कबतक खुला रहेगा?

यह सवाल बहुत-से लोगोंने पूछा है। जवाब यह है कि जबतक जरूरत दिखाई देगी तबतक। स्वेच्छया पंजीयनमें कार्यालय खुला रहनेके लिए निश्चित अवधि नहीं हो सकती। किन्तु मोटे हिसाबसे प्रति सप्ताह एक हजार मनुष्य पंजीकृत होते दीख पड़ते हैं। और जोहानिसबर्ग की जनसंख्या पाँच हजारकी हो तो उसके पाँच सप्ताह खुले रहनेकी सम्भावना है।

 
  1. रेवरेंड ड्यूडनी ड्रू; अपनी पुस्तक दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहासमें गांधीजीने उन्हें "दक्षिण आफ्रिकाके एक उत्तम वक्ता" बताया है। यूरोपीयोंके प्रबल विरोधके बावजूद उन्होंने भारतीय पक्षका समर्थन किया। फ्रेंड पत्रका सम्पादन करनेके लिए उन्होंने पादरीका काम छोड़ दिया था।