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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

पुलिस जाँच-पड़ताल करेगी या नहीं?

यह प्रश्न पूछनेवाले व्यक्ति समझौतेको नहीं समझते। जो लोग स्वेच्छया पंजीयन करायें उनपर खूनी कानून अथवा उसके अन्तर्गत बनाई गई धाराएँ बिलकुल लागू नहीं होतीं, और लागू होंगी भी नहीं ऐसा लिखित वचन है। इसलिए फिर ऊपरका प्रश्न नहीं रहता। इसका अर्थ मैं यह नहीं लगाना चाहता कि पुलिस किसीसे पूछेगी ही नहीं। स्वेच्छया पंजीयन करा चुकनेके बाद कुछ-न-कुछ नया कानून तो बनेगा ही। उस कानूनमें जाँच-पड़तालसे सम्बन्धित कुछ खण्ड रखे जायेंगे। ये खण्ड किस प्रकारके होंगे, नया कानून कैसा बनेगा, इसका आधार भारतीय कौमके तीन महीनेके बरतावपर है। पठान लोग क्षुद्र नासमझीके कारण, और बच्चोंकी-सी माँग करके सरकारपर बुरा प्रभाव डाल रहे हैं। इसके विपक्षमें सरकारको यह प्रतीति हो जाये कि भारतीय कौमके अन्य लोग समझदार, प्रामाणिक और बाकायदा चलनेवाले हैं तो उनके योग्य कानून बनेगा। इसलिए इस समय प्रत्येक भारतीयपर पूरा-पूरा उत्तरदायित्व है, यह समझ लिया जाये। स्थानिक सत्ताधिकारियोंसे पग-पगपर काम पड़ेगा। इसमें बड़ी सरकार बीचमें नहीं आती, आ भी नहीं सकती, यह जान लेना चाहिए। तो फिर जिस बातसे हमारी मानवतापर आँच नहीं आती उस बातमें सरकारके साथ विवेकसे और विचारपूर्वक बरतना चाहिए, यह ध्यानमें रखकर तीन महीनेके लिए और सदाके लिए ये नियम दे रहा हूँ:

१. प्रत्येक भारतीय अपना निजी स्वार्थ भूलकर समूचे समाजका हित देखे।

२. गलत अनुमतिपत्रका स्वयं प्रयोग न करें और दूसरोंको प्रोत्साहित भी न करें।

३. गलत ढंगसे अपने आदमीको दाखिल करनेका विचार न करें।

४. लड़कोंके नाम और उम्र सही-सही दें।

५. भारतीय बड़ी संख्यामें दाखिल हों, इस प्रकारका लोभ छोड़ दें।

६. अधिकारियोंके साथ उद्दण्डताका व्यवहार न करें। खुशामद जरा भी न की जाये, लेकिन नम्रता रखें।

७. सबके सब भारतीयोंसे जल्दी-जल्दी पंजीयन करायें।

८. प्रायः सभी भारतीय समझदारीसे और यह जानकर अँगुलियोंकी छाप दें कि इसके देनेमें मानहानि नहीं है।

इन नियमोंका पालन किया जायेगा तो मैं साहसके साथ कह सकता हूँ कि अब जो कानून बनेगा वह इतना नरम होगा कि भली-भाँति सहन किया जा सकेगा; और वह हमारे योग्य होगा।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २२-२-१९०८