पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/१३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९७
संक्षेपमें स्पष्टीकरण

किया भी। श्री अलीने जो किया था उसके लिए मैं उनको दोष नहीं देता। इस समय पठानोंने जो किया उसके लिए भी मैं उनको दोष नहीं दे रहा हूँ। श्री अमीर अलीसे मैं परिचित हूँ। कौमके लिए उनसे मैंने मदद माँगी है। और वह मिली है। श्री जिन्नासे भी मैं परिचित हूँ। दोनोंको आदर-भावसे देखता हूँ। इसलिए मैं यह बात उलाहनेके रूपमें नहीं, बल्कि हमारे मनकी स्थिति क्या है, यह सूचित करनेके लिए लिख रहा हूँ।

बात यह है कि मैंने दोनों कौमोंको इकट्ठा करनेके लिए बड़ी ही मेहनत की है। इतनेपर भी कहीं-कहीं विश्वासकी कमी देखता हूँ। यह हमारी कमजोरीका लक्षण है। मैं यह जानकर दुःखी हो रहा हूँ। फिर समझौते के बारेमें जो चर्चाएँ चलती हैं, उनसे मुझे पता चलता है कि कुछ मुसलमान भाई कह रहे हैं कि "गांधीने मुसलमानोंका सत्यानाश कर दिया, और पन्द्रह वर्षसे ऐसा ही करता आ रहा है।" ऐसे वचन किसी भी भारतीयके मुँहसे निकलें, यह बड़े खेदकी बात है। कहनेवालेको खुद समझ होनी चाहिए कि स्वप्नमें भी किसीका बुरा करनेका विचार मुझे कभी नहीं आया।

यह सारी लड़ाई अच्छी स्थितिवाले भारतीयोंकी प्रतिष्ठा बनाये रखनेके लिए थी। दक्षिण आफ्रिकामें मुसलमान अधिक अच्छी स्थितिमें रहते हैं। यह लड़ाई मुख्यतया व्यापारियोंके लिए थी। हमीदिया इस्लामिया अंजुमनने बड़ी भारी मदद न दी होती तो हम कभी जीत नहीं सकते थे। बहुत सारे मुसलमान भी मेहनत न करते तो भी जीत हाथ न आती। तब यह कैसे कहा जा सकता है कि मैंने मुसलमानोंका सत्यानाश कर दिया?

मैं समझता हूँ कि ऐसा कहनेवाले लोग थोड़े ही हैं। ज्यादातर मुसलमान समझते हैं और जानते हैं कि दक्षिण आफ्रिकामें हिन्दू-मुसलमान एक ही हैं और उन्हें एक होकर रहना चाहिए। अगर मुझसे कुछ हानि हुई हो तो वह सिर्फ मुसलमानोंकी ही नहीं, किन्तु पूरी भारतीय कौमकी होनी चाहिए। ऐसा हुआ दिखाई नहीं देता। फिर भी चर्चा चल रही है। इसलिए मैं अपने मुसलमान भाइयोंको चेतावनी देता हूँ कि ऐसी बात कहकर जो झगड़ा करवाना चाहते हैं उनको कौमका दुश्मन समझें और उनकी बात न सुनें।

जो लोग मानते हैं कि झगड़ा करनेमें अच्छाई है उनसे मैं कहता हूँ कि आप लोग अपने हाथसे बरबाद हो रहे हैं, और सारी कौमको बरबाद करना चाहते हैं। ऐसा करनेसे बचें। स्वार्थकी दृष्टि छोड़कर अच्छाई करनेकी ओर मन लगायें।

हिन्दू भाइयोंसे मैं कहता हूँ कि जो कौमके बैरी हों ऐसे कुछ मुसलमान चाहे जैसा बोलें, फिर भी उसको मनमें न लाकर हम सबको एक ही होकर रहना है। ऐसा विचार करके भूल करनेवालोंकी भूलको दरगुजर कर दें। उलटकर जवाब न दें। झगड़ा दोष ड्योढ़ा किये बिना पैदा नहीं होता। यह बात याद रखकर आप लोग आधे दोषमें भी न पड़ें।

दक्षिण आफ्रिकामें मेरा कर्त्तव्य तो एक ही है; और वह है--हिन्दुओं और मुसलमानोंको एक रखकर, एक ही समझकर, कौमकी सेवा करना। इस बातके सिलसिलेमें कुछ प्रश्न पैदा हुए हैं। उनपर विचार आगामी सप्ताहमें करेंगे। इस बीच ऊपरके तथ्योंको धैर्यसे और बार-बार पढ़ने की सिफारिशमें सभी भारतीयोंसे करता हूँ।

मोहनदास करमचन्द गांधी

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, २२-२-१९०८
८-७