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पत्र: जनरल स्मट्सको

करने की कृपा करेंगे। आपको पता होगा कि वह जायदाद एक यूरोपीय पेढ़ीको पट्टेपर दी गई है और वह हर तरहसे यूरोपीयोंके ही उपयोगमें आ रही है और वहाँ बनी हुई इमारत सब प्रकारसे प्रिटोरिया नगरके मुख्य मार्गके लिए शोभनीय है।

एशियाई अधिनियममें से मैंने शराबके बारेमें कथित राहत देनेवाली धाराको नहीं लिया है। मेरा व्यक्तिगत खयाल है कि वह बिलकुल व्यर्थ है और उसे किसी भाँति अधिनियमका अंग नहीं होना चाहिए था।[१]


मैं जानता हूँ कि आप प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमके[२] खण्ड ६ में भी संशोधन करने-वाले हैं। मैं उसके संशोधनका मसविदा भी पेश करने ही वाला था, परन्तु दुबारा सोचनेपर मेरी समझमें आया कि वह बात मेरे क्षेत्रमें नहीं आती। परन्तु क्या मैं यह सुझाव दे सकता हूँ कि निष्कासनके बदले मजिस्ट्रेटको अधिकार दे दिया जाये कि वह उन लोगोंको सजा दे जो देश छोड़नेकी आज्ञाका उल्लंघन करें और जबतक वे अपने-आप और अपने खर्चसे देश न छोड़ दें, तबतक के लिए उन्हें जेलमें रहनेकी सजा दे? मेरा खयाल है कि कोई सभ्य सरकार सम्भवतः अधिकसे-अधिक इतना ही कर सकती है। यदि ऊपरके अनुसार खण्ड ६ में संशोधन कर दिया जाता है तो खण्ड ११ और खण्ड १५ के उपखण्डमें भी वैसा ही संशोधन करना आवश्यक होगा।

अब मुझे इतना ही और कहना है कि प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमको जैसा मैंने समझा है उसके अनुसार मलायी और केपके रंगदार लोग वर्जित प्रवासी ठहरते हैं। मैं नहीं समझता कि सरकारका ऐसा कोई इरादा था। मैं तो ऐसा कुछ सोचता हूँ कि खण्ड २ की धारा 'ज' के द्वारा उनका वैसा ही संरक्षण किया जायेगा जैसा आफ्रिकाकी आदिम जातियोंके वंशजोंका किया जाता है।

मेरी सम्मतिमें, एशियाई अधिनियमके मुख्य उद्देश्यको कार्यान्वित करनेके लिए, अर्थात् निरीक्षणके लिए और परवानोंको केवल उन लोगों तक सीमित रखनेके लिए जो वर्जित प्रवासी नहीं हैं, और किन्हीं संशोधनोंकी आवश्यकता नहीं होगी। क्योंकि, प्रवासी प्रतिबन्धक अधि- नियमके अन्तर्गत इन दोनों बातोंकी भरपूर व्यवस्था कर दी गई है। परवानेके लिए प्रार्थना-पत्र देनेवाले प्रत्येक व्यक्तिको यह सिद्ध करना होगा कि वह वर्जित प्रवासी नहीं है। और प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम के अन्तर्गत नियुक्त अधिकारियोंको अधिकार होगा कि यदि किसी व्यक्तिपर वर्जित प्रवासी होनेका सन्देह हो तो वे उससे इसको अन्यथा प्रमाणित करनेको कहें।

यदि ऐसे एशियाई हों जो स्वेच्छया पंजीयनकी सुविधासे लाभ नहीं उठाते तो मेरा खयाल है कि जो संशोधन मैंने सुझाये हैं उनको ध्यानमें रखते हुए, आपको उनके मामलेमें एशियाई अधिनियमका प्रयोग करनेकी आवश्यकता नहीं है; क्योंकि इस अधिनियमकी रूसे वे अपने आप वर्जित प्रवासी ठहरेंगे और निष्कासनकी आज्ञाके भागी होंगे। जो लोग उपनिवेशके बाहर हैं और पहलेके अधिवासी होनेके कारण शिक्षा सम्बन्धी योग्यता न रखनेपर भी उपनिवेशमें पुनः प्रवेश करनेके अधिकारी हैं उनके लिए, आप देखेंगे, मेरे द्वारा प्रस्तुत

 
  1. देखिए खण्ड ६, पृष्ठ १२५।
  2. देखिए प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयककी धाराओंके लिए खण्ड ७, परिशिष्ट ३, और प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमके लिए इस खण्डका परिशिष्ट १।