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नीली पुस्तिका

है, स्वर्गीय अबूबकरके उत्तराधिकारियोंके पक्षमें, १८८५ के कानून ३ के, जैसा कि वह फोक्सरस्टके प्रस्तावों, १२ अगस्त १८८६ के अनुच्छेद १४१९ से संशोधित हैं, खिलाफ किसी बातके होते हुए भी और बिना और अधिक हस्तान्तरणका कर दिये हुए, हस्तान्तरित किया जा सकता है।

[ अंग्रेजी से ]
इंडियन ओपिनियन, ४-७-१९०८

इंडिया आफिस, ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स: २८९६/०८ भी।

५०. नीली पुस्तिका[१]

लॉर्ड एलगिनने[२] जनवरी मासमें जो "नीली पुस्तिका" प्रकाशित की है वह अब आफ्रिका आ पहुँची है। उसे नीली पुस्तिका कहा जाता है; किन्तु सचमुच तो "उसे काली पुस्तिका" कहना चाहिए। जो आदमी इस नीली पुस्तिकाको पढ़ेगा और समझेगा वह तुरन्त समझ जायेगा कि बात यह है कि जो जीत भारतीयोंको मिली है वह बड़ी सरकारके विरोधी होनेके बावजूद मिली है। और वह केवल सत्यके बलपर। जनवरी १० तक बड़ी सरकारका विचार एकदम कच्चा था, ऐसा दीख पड़ता है। उसके बाद बड़ी सरकारका विचार बदल गया, ऐसा हमने देखा। किन्तु इसमें बड़ी सरकारकी अच्छाई मानने जैसा कुछ नहीं है। वह तो 'रपट पड़ेकी हर गंगा' जैसा हुआ है। इस किताबसे जाहिर होता है कि प्रवासी अधिनियम[३] जैसा है यदि वैसा ही रहे तो उसकी दूसरी धाराकी उपधारा ४ का अर्थ सरकारके विचारके अनुसार यह है कि ट्रान्सवालके बाहर रहनेवाला कोई भी भारतीय प्रवेश नहीं पा सकता। यदि उस कानूनका सचमुच यही अर्थ हो तो मिली हुई जीत कितनी अच्छी है, यह और भी स्पष्ट हो जाता है। किन्तु उसके साथ यह भी समझना जरूरी है कि यदि प्रवासी कानूनका सरकार द्वारा किया गया अर्थ ठीक हो तो परीक्षा उत्तीर्ण करने-वाला भारतीय प्रवेश नहीं पा सकता। यदि भारतीय समाज अगले तीन महीने तक अपना कर्त्तव्य अच्छी तरह करे तो सम्भव है कि ऐसी आशंका निरर्थक सिद्ध हो जाये। फिर भी फिलहाल तो "नीली पुस्तिका" के बारेमें यह टीका उचित है कि प्रवासी कानूनका ऐसा विषाक्त अर्थ निकलनेपर भी उसे लॉर्ड एलगिनने मंजूर कर लिया। और इसी प्रकार प्रवासी अधि- नियमकी धारा ६ में भारतीयोंको देश-निकाला देनेकी बात डाली गई थी, उसे भी एलगिन साहब मंजूर कर चुके थे, सो भी यह कहकर कि एशियाई अधिनियमको लागू करने और सत्याग्रहका निवारण करनेके लिए स्थानिक सरकारको अधिक शक्तिकी जरूरत है, सो दी जानी चाहिए।

 
  1. ब्ल्यू बुक या सरकारी रिपोर्ट।
  2. लॉर्ड एलगिन (१८४९-१९१७); भारतके वाइसराय, १८९४-९९; वापसीपर दक्षिण आफ्रिकाके युद्धके बारेमें नियुक्त रायल कमीशनके अध्यक्ष मनोनीत किये गये; १९०५ में सर हेनरी केम्बेल-बैनरमैनके मन्त्रिमण्डलमें उपनिवेश मन्त्री बनाये गये। ट्रान्सवाल भारतीयोंके शिष्टमण्डलसे उनकी भेंटकी रिपोर्टके लिए देखिए खण्ड ६, पृष्ठ १२०-१३०।
  3. देखिए खण्ड ७, परिशिष्ट ३।